सहजोबाईजी - नश्वर शरीर

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


देह निकट तेरे पड़ी, जीव अमर है नित्त ।
दुइ में मूवा कौन सा, का सूँ तेरा हित्त ॥
जो तेरा हित देह सूँ, नख सिख ताही खंड ।
जीव अमर सहजो कहै, ब्यापक और अखंड ॥
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यों खाता यों सोवता, मीठे कहता बोल ।
यह बिचार तू मत करै, चित रहै डाँवाडोल ॥
बैठि पहिरि यों चालता, बस्तर भूषन लाल ।
यह बिचार तू मत करै, छल रूपी जग जाल ॥
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कभुवक तेरा बाप है, कभुवक तेरा पूत ।
कभुवक तेरा मित्र है, कभुवक तेरा सूत ॥
जो तेरे सँग प्यार था, जाता वाके साथ ।
कै वाही कूँ राखता, सहजो गहि कर हाथ ॥
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आगे रो रो क्या किया, अब क्यों रोवै भाँड ।
संग न आया ना चलै, यह जग झूठी माँड ॥
आगे मुए सो जा चुके, तू भी रहे न कोय ।
सहजो पर कूँ क्या झुरै, आपन ही कूँ रोय ॥
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आपन हूँ थिर होहिं जो, करें और को सोग ।
सहजो साथी नाव के, सभी बटाऊ लोग ॥
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बैठि बैठि बहुतक गये, जग तरवर की छाँहि ।
सहजो बटाऊ बाट के, मिलि मिलि बिछुड़त जाहिं ॥
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यह रस्ता बहता रहै, थमै नहीं छिन एक ।
बहु आवैं बहु जातु है, सहजो आँखन देख ॥
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हिरनाकुस से है मिटे, दुर्जोधन सिसुपाल ।
कुंभकरन रावन गये, सहजो खाया काल ॥
निस्चै मरना सहजिया, जीवन की नहिं आस ।
कै टूटी सी झोपड़ी, कै मन्दिर में बास ॥
कै गरीब सिर टोकरी, कै सिर छत्तर होय ।
जन्म मरन में एक से, सहजो भाँति न दोय ॥
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मुए सो काया जारई, बहुरि न मिलिहै आय ।
रोये तें कहा होत है, सहजो झुरै बलाय ॥
झुरि झुरि के पिंजर भये, रोय गँवाये नैन ।
मरे गये सो ना मिले, सहजो सुने न बैन ॥
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जो रोये सूँ बाहुरै, तौ रोवौ दिन रात ।
तन छीजै वह न मिलै, सहजो कूड़ी बात ॥
काहे कूँ रोवत रहौ, कल्प न होवै काज ।
सहजो मुए सो मरि गये, आवैं काल्ह न आज ॥
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जग देखत तुम जावगे, तुम देखत जग जाय ।
सहजो योंही रीति है, मत कर सोच उपाय ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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