त्रिगुणमयी परमेश्वरी महालक्ष्मी - सावर्णि नाम के राजा ने प्रसंगवश क्रौष्टिक मुनि जिनका दूसरा नाम भागुरि ऋषि भी था, से पूछा कि भगवन् आप मुझे त्रिगुणमयी देवी के प्रधान प्रकृति को बताइए । ऋषि बोले कि हे राजन् ! यह विषय परम गोपनीय है, इसे किसी से कहने योग्य नहीं बतलाया गया है, किन्तु तुम मेरे भक्त हो, इसलिए तुमसे न कहने योग्य मेरे पास कुछ भी नहीं है । सुनो ! त्रिगुणमयी परमेश्वरी ही महालक्ष्मी, सबकी आदि कारण हैं, । उन्होंने अपने तेज से इस शून्य जगत् को व्याप्त कर रखा है । वे अपनी चारों भुजाओं में मातुलिंग ( विजौरे का फल ) , गदा, खेट ( ढाल ) एवं पान का बर्तन और मस्तक पर सर्प, लिंग तथा योनि - इन वस्तुओं को धारण करती हैं । तपाए हुए सोने के समान उनकी कांति है, तपाये हुए सुवर्ण के ही उनके आभूषण है । उस महालक्ष्मी ने इस संपूर्ण जगत् को देखकर केवल तमोगुण रुप उपाधि के द्वारा एक अन्य उत्कृष्ट रुप धारण किया ।
तमोगुनी परमेश्वरी महाकाली - वह रुप नारी का ही था, जिसके शरीर की कांति निखरे हुए काजल की भाँति काले रंग की थी उसका श्रेष्ठ मुख दाढ़ो से सुशोभित था । नेत्र बड़े - बड़े और कमर पतली थी । उसकी चारों भुजाएँ ढाल, तलवार, प्याले और कटे हुए मस्तक पर मुंडों की माला धारण किए हुए थी । इस प्रकार प्रकट हुई स्त्रियों में श्रेष्ठ तामसी देवी ने महालक्ष्मी से कहा - ' माता जी ! आपको नमस्कार है । मुझे मेरा नाम और कर्त्तव्य बताइए ।' तब महालक्ष्मी ने स्त्रियों में श्रेष्ठ उस तामसी देवी से कहा - ' मै तुम्हें नाम प्रदान करती हूँ और जो - जो कर्म हैं, उनको भी बतलाती हूँ । महामाया, महाकाली, महामारी, क्षुधा, तृषा, निद्रा, एकबीरा, कालरात्रि तथा दुरत्यया - ये तुम्हारे नाम हैं, जो कर्मो द्वारा लोक में चरितार्थ होंगे । इन नामों के द्वारा तुम्हारे कर्मो को जानकर जो उनका पाठ करेगा, वह सुख भोगेगा ।
सतोगुणी परमेश्वरी महासरस्वती - हे राजन् ! महाकाली से यों कहकर महालक्ष्मी ने अत्यन्त शुद्ध सत्वगुण के द्वारा दूसरा रुप धारण किया, जो चन्द्रमा के समन गौरवर्ण था । वह श्रेष्ठ नारी आपने हाथों में अक्षमाला, अंकुश, वीणा तथा पुस्तक धारण किए हुए थी, महालक्ष्मी ने उसे भी नाम प्रदान किए । महाविद्या, महावाणी, भारती, वाक् , सरस्वती, आर्या, ब्राह्मी, कामधेनु, वेदगर्भा और धीश्वरी ( बुद्धि की स्वामिनी ) ये तुम्हारे नाम हैं ।
महाकाली और महासरस्वती को आदेश - तदन्तर महालक्ष्मी ने महाकाली और महासरस्वती से कहा - ' देवियों । तुम दोनों अपने - अपने गुणों के योग्य स्त्री पुरुष के जोड़े उत्पन्न करो ।'
महालक्ष्मी द्वारा ब्रह्मा तथा लक्ष्मी को उत्पन्न करना - उन दोनों से यों कहकर महालक्ष्मी ने पहले स्वयं ही स्त्री पुरुष का एक जोड़ा उत्पन्न किया । वे दोनों हिरण्यगर्भ ( निर्मल ज्ञान से युक्त ) सुन्दर तथा कमल के आसन पर विराजमान थे । उनमें से एक नारी थी और दूसरा नर । तत्पश्चात् माता महालक्ष्मी ने पुरुष को ब्रह्मन् बिधे ! विरन्चि ! तथा घातः ! इस प्रकार सम्बोधित किया ओर स्त्री को श्री ! पदमा ! कमला ! लक्ष्मी ! इत्यादि नामों से पुकारा ।
ऋषि बोले कि हे राजन् । इसके बाद महाकाली और महासरस्वती ने भी एक - एक जोड़ा उत्पन्न किया । इनके भी रुप और नान मैं तुम्हें बतलाता हूँ ।
महाकाली द्वारा शंकर तथा त्रयीविद्या ( सरस्वती ) को उत्पन्न करना - महाकाली ने कण्ठ में नील चिह्न से युक्त, लाल भुजा, श्वेत शरीर और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करने वाले पुरुष को तथा गोरे रंग की नारी को जन्म दिया । वह पुरुष रुद्र, शंकर, स्थाणु, कपर्दी और त्रिलोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा स्त्री के त्रयीविद्या, कामधेनु, भाषा, अक्षरा और स्वरा - ये नाम हुए ।
महासरस्वती द्वारा विष्णु और गौरी को उत्पन्न करना - हे राजन् ! महासरस्वती ने गोरे रंग की नारी ओर श्याम रंग के नर को प्रकट किया । उन दोनों के नाम भी मैं तुम्हें बतलाता हूँ । उनमें नर ( पुरुष ) के नाम विष्णु, कृष्ण, हषीकेश, वासुदेव और जनार्दन हुए तथा स्त्री उमा, गौरी, सती, चण्डी, सुन्दरी, सुभगा और शिवा इन नामों से प्रसिद्ध हुई । इस प्रकार महालक्ष्मी ही दो स्त्री रुप होकर तीन स्त्री रुप हुई और वही युवतियाँ ( तीनों रुप ) ही तत्काल पुरुष रुप को प्राप्त हुई । इस बात को ज्ञान नेत्र वाले ही समझ सकते हैं । दूसरे अज्ञानी जन इस रहस्य को नहीं जान सकते ।
त्रय शक्तियों द्वारा सृष्टि का सृजन, पालन तथा संहारः - हे राजन् ! महालक्ष्मी ने त्रयीविद्या रुपा सरस्वती को ब्रह्मा के लिए पत्नी रुप में समर्पित किया, रुद्र को वरदायिनी गौरी तथा भगवान् वासुदेव को लक्ष्मी दे दी । इस प्रकार सरस्वती के साथ संयुक्त होकर ब्रह्मा जी ने ब्रह्माण्ड को उत्पन्न किया और परम पराक्रमी भगवान् रुद्र ने गौरी के साथ मिलकर उसका भेदन किया । राजन् ! उस ब्रह्माण्ड में प्रधान ( हमतत्त्व ) आदि कार्य समूह पंचमहा भूतात्मक समस्त स्थावर - जंगम - रुप - जगत् की उत्पत्ति हुई । फिर लक्ष्मी के साथ भगवान् विष्णु ने उस संसार का पालन - पोषण किया और प्रलय काल में गौरी के साथ महेश्वर ने उस सम्पूर्ण संसार का संहार किया । तो महाराज ! महालक्ष्मी ही सर्वसत्वयुक्त तथा सब तत्त्वों का नाना प्रकार के नाम धारण करती हैं । सगुण वाचक सत्य, ज्ञान, चित्त्, महामाया आदि नामान्तरों से इन महालक्ष्मी का निरुपण करना चाहिए । केवल एक नाम ( महालक्ष्मी मात्र ) से अथवा अन्य प्रत्यक्ष अनुमान उपमान शब्द प्रमाण से उनका वर्णन नहीं हो सकता ।
तो हे राजन् ! ध्यान से विचार करो कि जिन सत्वप्रधाना त्रिगुणमयी महालक्ष्मी के तामसी आदि भेद से तीन रुप बताए गए हैं, वे ही शर्वा, चण्डिका, दुर्गा और भगवती आदि नामों से कही जाती हैं ओर ये ही भगवती दुर्गा भगवान् शंकर के साथ कामाख्या में विराजकर अपने भक्तों को दर्शन देती हैं, और उनकी अभिलाषाएँ पूरी करती हैं । उन्हीं देवी को हम कामाख्या कहते हैं । हम उनके चरणों में शीश नवाते हैं । बोलो ! जै कामाख्या की ।