कामाख्या सिद्धी - आसन शुद्धि

कामरूप कामाख्या में जो देवी का सिद्ध पीठ है वह इसी सृष्टीकर्ती त्रिपुरसुंदरी का है ।

कामाख्या में देवी जी पूजन वहाँ के पुजारी जैसे कराएँ वैसे करना चाहिए अथवा देवी - पूजन - विधि के अनुसार करना चाहिए । मन्दिर में सब देवों का पूजन कर लाल वस्त्र पर देवीजी का पूजन करें और घर में, गणेश - गौरि, कलश, नवग्रह षोडश मातृकादि का स्थापन पूजनादि के बाद कामाख्या देवी का स्थापन पूजन करें ।


अथ आसन शुद्धि - साधक को चाहिए कि स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करके आचार्य के आदेशानुसार पूर्वादिक मुँह करके आसन पर बैठे । तब आसन के नीचे पूर्वादिक भाग में त्रिकोण मण्डल बनाकर निम्नांकित मन्त्र द्वारा गन्ध पुष्पादि धूप दीप नैवेद्य दक्षिणादि से पूजन करें ।


मन्त्र - ह्लीं आधार शक्तये नमः ॥ ॐ कूर्माय नमः ॥ ॐ अनन्ताय नमः ॥ ॐ पृथिव्यै नमः ॥

पूजन के बाद उस त्रिकोण का स्पर्श इस मन्त्र द्वारा करें ।


मन्त्र - ॐ पृथ्वि ! त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥

अब शुद्धासन पर डालकर पूजा के निमित्त आसन ग्राहण करें और रक्षा विधान करें ।


आचमन विधि - पुण्य कार्य के आरम्भ में आचमन अवश्य करना चाहिए । आचमन के समय जल का नख से स्पर्श तथा ओष्ठ का शब्द नहीं होना चाहिए । प्रथम आचमन से आध्यात्मिक, दूसरे से अधिभौतिक और तीसरे से अधिदैविक शान्ति होती है । इसलिए तीन बार आचमन करें और चौथे मन्त्र से बोलते हुए दूसरे पात्र के जल से हाथ की शुद्धि करें ।


मन्त्र - ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः ॥ तत्पश्चात् हाथ धोये - ॐ हषीकेशाय नमः ॥

पुष्प शुद्धि - नीचे के मन्त्र से पूजा - पुष्प को देखें -

ॐ पुष्पे पुष्पे महापुष्पे सुपुष्पे पुष्प सम्भवे ।
पुष्प चमा वकीर्णन च हुँ फट् स्वाहा ॥

कर शुद्धि - साधक ऐं कहकर रक्त पुष्प हाथ में लेवे और ॐ कहकर दोनों हाथों से प्रेषण करें ( उक्त पुष्प को हाथ में घुमाए ) । इसके बाद उस पुष्प को ईशान कोण में रख दें ।

शरीर तथा पूजन सामग्री शुद्धि - अब आचार्य अथवा साधक स्वयं अपने सिर पर जल छिड़के ।


मन्त्र - ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं सावाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

पुनः पूजन सामग्री पर जल छिड़के ।

मन्त्र - ॐ पुण्डरीकाक्षं पुनातु ।

यज्ञोपवीत धारण करना - तब इस मन्त्र से यज्ञोपवीत धारण करें ।

मन्त्र - ॐ यज्ञोपवीतं परमं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥

तपश्चात् दो बार आचमन करें ।

भस्म और टीका लगाना - ' ॐ हुं फट् ' से मस्तक, कण्ठ, हदय और बाहु में त्रिपुण्ड धारण करें । पुनः ' ऐं ' कहकर रोली ले बाएँ हाथ पर रखे और ' ह्लीं ' का उच्चारण कर जल मिलाकर दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से गीला करें और ' श्री ' बोलकर मध्यमा उंगली से मस्तक के मध्य में एक लम्बा टीका लगाए । ' क्लीं ' बोलते हुए हाथ धोए और पुनः हाथ जोड़ ' ॐ ' का उच्चारण कर देवी का ध्यान करें ।

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Last Updated : July 16, 2009

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