यज्ञकर्ता पदमासन से बैठकर भगवती को ध्यान करते हुए मौन होकर नेत्र को बन्दकर तीन बार प्राणायाम करें-
पूरक प्राणायामः- नासिका के दाहिने छिद्र को अंगुष्ठ से दबाकर बाएँ छिद्र से श्वांस खींचता हुआ नील कमल के सदृश्य श्याम वर्ण चतुर्भुजी भगवती का ध्यान अपनी नाभि में करें ।
कुम्भक प्राणायामः- उस छिद्र को दबाए हुए नासिका के बाएँ छिद्र को कनिष्ठिका और अनामिका अंगुलियों से दबाकर के श्वांस को रोकर कमल के आसन पर बैठे हुए रक्त वर्ण चतुर्भुजी भगवती का ध्यान अपने हदय में करें ।
रेचक प्राणायामः- श्वेतवर्णा त्रिनेत्रा चतुर्भुजी भगवती का ध्यान अपने ललाट में करता हुआ नासिका के दाहिने छिद्र को खोलकर धीरे - धीरे श्वास छोड़े । ( गृहस्थ तथा वानप्रस्थी पाँचों अंगुलियों से नासिका को दबाकर भी प्राणायाम कर सकते हैं । )
प्राणायाम मन्त्र
क्लीं पूरक प्राणायाम् में सोलह बार मन्त्र को जपे । कुम्भक प्राणायाम् में चौसठ बार तथा रोचक में बत्तीस बार उच्चारण करें ।
अथ पीठन्यासः
हदयः- ॐ आधार शक्तये नमः । ॐ प्रकृत्यै नमः । ॐ कुर्म्माय नमः । ॐ अनन्ताय नमः । ॐ पृथिव्यै नमः । ॐ क्षीर समुद्रायै नमः । ॐ रति द्वीपाय नमः । ॐ मणि मण्डलाय नमः ।
दक्षिण - स्कन्ध - ॐ धर्माय नमः ।
वाम - स्कन्ध - ॐ ज्ञानाय नमः ।
दक्षिण उर मूले - ॐ वैराज्ञाय नमः ।
वाम उर मूले - ॐ ऐश्वर्याय नमः ।
मुख - ॐ धर्माय नमः ।
दक्षिण पार्श्व - ॐ आज्ञानाय नमः ।
वाम पार्श्व - ॐ अवैरायनमः ।
नाभि - ॐ अनैश्वर्याय नमः ।
पुनः
हदय - ॐ शेषाय नमः । ॐ पद्माय नमः । ॐ सूर्य मण्डलाय द्वादश कलात्मने नमः । ॐ सोम मण्डलाय षोडश कलात्मने नमः । ॐ भौम मण्डलाय द्वादश कालात्मने नमः । ॐ सत्वाय नमः । ॐ रं रजसे नमः । ॐ तं तमसे नमः । ॐ आं आत्मने नमः । ॐ पं पात्मने नमः । ॐ क्लीं ज्ञानात्मने नमः ।