स्थलमातृका पूजन
१. ब्राह्मी, २. माहेश्वरी, ३. कौमारी, ४. वैष्णवी, ५. वाराही, ६. इन्द्राणी, ७. चामुण्डा - ये सात स्थल मात्रुकाओं का नाम लेकर पूर्ववत् कहे हुए रीति से आह्वान पूजनादि करना चाहिए ।
अधिदेवता पूजन
ईश्वर शिवा, स्कन्द, विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्र, यम, काल, चित्रगुप्त - ये क्रम से नवग्रहों के दक्षिण भाग में स्थापित कर पूजन करें ।
प्रत्यधि देवता पूजन
अग्नि, जल, पृथ्वी, विष्णु, इन्द्र इन्द्राणी, प्रजापति, सर्प, ब्रह्मा ये क्रम से नवग्रहों के वाम भाग में स्थापित कर पूजन करें ।
पञ्चलोक पाल
१. गणपति, २, दुर्गा, ३. वायु. ४. आकाश और ५. अश्विनी कुमार । पंचलोक पालों को नौ ग्रहों के उत्तर भाग में आह्वान स्थापन तथा पूजनादि करना चाहिए ।
दश दिकपाल
१. इन्द्र, २. अग्नि, ३. यम, ४. नऋति, ५. वरुण, ६. वायु. ७. कुबेर. ८, ईश्व, ९. अनन्त और १०. ब्रह्मा ।
दश दिकपालों को दसों दिशाओं में स्थापित करें ।
श्री कार्तिकेय पूजन
जहाँ देवी का आसन ( रक्त वस्त्र ) है उसी के सामने नीचे की ओर षडानन स्वामी कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए ।
बिल्व पत्र पूजन
बिल्व वृक्ष की एक डाल काटकर लाए और आसन के ऊपर छाया की भाँति लगा दें । अभाव में २ - ३ पत्तियों की ९ पंखुड़ियाँ ही लाकर वस्त्र पर रख ध्यान करें -
ॐ चतुर्भुज बिल्व वृक्षः रजताभ्याम् वृषस्थितम् ।
नानालंकार संयुक्तं जटामण्डल धारिणीम् ॥
' ॐ बिल्व वृक्षाय नमः ' कहकर पूजन करें । फिर प्रार्थना करें - ॐ श्री फलोऽसि महाभाग सदात्वं शंकर प्रिये कामाक्ष्या रोपनार्थाय त्वांमहं वरये प्रभो ।
अब पूजनकर्त्ता भावना करके वृषभ, त्रिशूल और डमरु का भी पूजन करें । तदनन्तर महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली का पूजन करें ।