ज्येष्ठ शुक्लपक्ष व्रत - निर्जलैकादशीव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


निर्जलैकादशीव्रत ( महाभारत ) -

यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशीको किया जाता है । इसका नाम निर्जला है; अतः नामके अनुसार इसका व्रत किया जाय तो स्वर्गादिके सिवा आयु और आरोग्यवृद्धिके तत्वं विशेषरुपसे विकसित होते हैं । व्यासजीके कथनानुसार यह अवश्य सत्य हैं कि ' अधिमाससहित एक वर्षकी पच्चीस एकादशी न की जा सकें तो केवल निर्जला करनेसे ही पूरा फल प्राप्त हो जाता है ।' निर्जला व्रत करनेवाला पुरुष अपवित्र अवस्थाके आचमनके सिवा बिन्दुमात्र जल भी ग्रहण न करे । यदि किसी प्रकार उपयोगमें ले लिया जाय तो उससे व्रत - भङ्ग हो जाता है । दृढ़तापुर्वक नियमपालनके साथ निर्जल उपवास करके द्वादशीको स्त्रान करे और सामर्थ्यके अनुसार सुवर्ण और जलयुक्त कलश देकर भोजन करे तो सम्पूर्ण तीर्थोंमें जाकर स्त्रान - दानादि करनेके समान फल होता है ।

एक बार बहुभोजी भीमसेनने व्यासजीके मुखसे प्रत्येक एकादशीको निराहार रहनेका नियम सुनकर विनम्र भावसे निवेदन किया कि ' महाराज ! मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता । दिनभर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है । अतः आप कोई ऐसा उपाय बतला दीजिये जिसके प्रभावसे स्वतः सदगति हो जाय ।' तब व्यासजीने कहा कि ' तुमसे वर्षभरकी सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला कर लो, इसीसे सालभरकी एकादशी करनेके समान फल हो जायगा ।' तब भीमने वैसा ही किया और स्वर्गको गये ।

वृषस्थे मिथुनस्थेऽकेम शुक्ला ह्येकादशी भवेत् ।

ज्येष्ठे मासि प्रयत्नेन सोपोष्या जलवर्जिता ॥

स्त्राने चाचमने चैव वर्जयेन्नोदकं बुधः ।

संवत्सरस्य या मध्ये एकादश्यो भवन्युत ॥

तासां फलमवाप्रोति अत्र मे नास्ति संशयः । ( हेमाद्रौ - महाभारते व्यासवनम् )

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Last Updated : January 20, 2009

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