करवीव्रत ( भविष्योत्तर ) -
ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदाको देवतके बगीचेंमें जाकर कनेरके वृक्षका पूजन करे । उसको मूल और शाखाप्रशाखाओंके सहित स्त्रान कराकर लाल वस्त्र ओढ़ावे । गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्यादिसे पूजन करे । उसके समीप सप्तधान्य रखकर उसपर केले, नारंगी, बिजौरा और गुणक आदि स्थापित करे और
' करवीर विषावास नमस्ते भानुवल्लभ । मौलिमण्डन दुर्गादिदेवानां सततं प्रिय ॥'
इस मन्त्रसे अथवा
' आकृष्णेन रजसा वर्तमानो० '
इत्यादि मन्त्रसे प्रार्थना करके पूजा - सामग्री ब्राह्मणको दे दे । फिर घर जाकर व्रत करे । यह व्रत सूर्यकी आराधनाका है । आपदग्रस्त अवस्थामें स्त्रियोंको तत्काल फल देता है । प्राचीन कालमें सावित्री, सरस्वती, सत्यभामा और दमयन्ती आदिने इसी व्रतसे अभीष्ट फल प्राप्त किया था ।