रम्भाव्रत ( भविष्योत्तर ) -
इस व्रतमें पूर्वविद्धा तिथि ली जाती हैं । इसके लिये ज्येष्ठ शुक्ल तृतीयाको प्रातःकाल स्त्रानादि नित्यकर्म करके शुद्ध स्थानमें पूर्वाभिमुख बैठे । अपने पार्श्वभागमें १ गार्हपत्य, २ दक्षिणाग्नि, ३ सभ्य, ४ आहवनीय और ५ भास्कर नामकी पाँच अग्नियोंको प्रज्वलित करे । उनके मध्यमें पूर्वाभिमुख बैठकर पद्मासनसे विराजमान चार भुजाओंवाली, सम्पूर्ण आभूषणादिसे भूषिता तथा जटा - जूट और मृगचर्मधारिणी देवीको अपने सम्मुख स्थापित करे । फिर
' ॐ महाकाल्यै नमः । महालक्ष्यै नमः । महासरस्तत्यै नमः ।'
आदि नामोंसे महानिशा, महामाया, महादेवी, महिषनाशिनी, गङ्गा, यमुना, सिन्धु, शतद्रु, नर्मदा और वैतरणीपर्यन्त सबका पूजन करे तथा इन्हीं नामोंसे ' नमः ' के स्थानमें ' स्वाहा ' का उच्चारण करके १०८ आहुतियाँ दें । फिर नाना प्रकारके फल, पुष्प और नैवेद्य अर्पण करके
' त्वं शक्तिस्त्वं स्वाहा त्वं सावित्री सरस्वती । पतिं देहि गृहं देहि सुतान् देहि नमोऽस्तु ते ॥ '
इस मन्त्रसे प्रार्थना करे तो उस स्त्रीका घर सुख, समृद्धि और पुत्रादिसे पूर्ण हो जाता है । यह व्रत माताके कहनेसे पार्वतीने किया था ।