हिंदी सूची|व्रत|मासिक व्रत परिचय|ज्येष्ठके व्रत|ज्येष्ठ शुक्लपक्ष व्रत| गङ्गा पूजन ज्येष्ठ शुक्लपक्ष व्रत करवीव्रत रम्भाव्रत दशहरा गङ्गा पूजन निर्जलैकादशीव्रत जलधेनुदान दुर्गन्धि दुर्भाग्यनाशक व्रत बिल्वत्रिरात्रिव्रत ज्येष्ठ शुक्लपक्ष व्रत - गङ्गा पूजन व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है । Tags : festivaljyeshthamonthvratज्येष्ठमहिनाव्रतसण गङ्गा - पूजन Translation - भाषांतर गङ्गा - पूजन - ज्येष्ठ शुक्ला दशमी ( यदि ज्येष्ठ अधिक मास हो तो अधिक ज्येष्ठकी शुक्ल दशमी ) को गङगतटवर्ती प्रदेशमें अथवा सामर्थ्य न हो तो समीपके किसी भी जलाशय या घरके शुद्ध जलसे स्त्रान करके सुवर्णादिके पात्रमें त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावयवभूषित, रत्नकुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रादिसे सुशोभित तथा वर और अभयमुद्रासे युक्त श्रीगङ्गाजीकी प्रशान्त मूर्ति अङ्कित करे । अथवा किसी साक्षात मूर्तिके समीप बैठ जाय । फिर ' ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गयै नमः ।' से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करे तथा इन्हीं नामोंसे ' नमः ' के स्थानमें स्वाहायुक्त करके हवन करे । तत्पश्चात् ' ॐ नमो भगवति ऐं ह्लीं श्रीं ( वाक् - काम - मायामयि ) हिलि हिलि मिलि गङ्गे मां पावय पावय स्वाहा ।' इस मन्त्नसे पाँच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके गङ्गको भूतलपर लानेवाले भगीरथका और जहाँसे वे आयी हैं, उस हिमालयका नाम - मन्त्रसे पूजन करे । फिर दस फल, दस दीपक और दस सेर तिल - इनका ' गङागयै नमः ।' कहकर दस करे । साथ ही घी मिले हुए सत्तूके और गुड़के पिण्ड जलमें डाले । सामर्थ्य हो तो सोनेके कच्छय, मत्स्य और मण्डूकादि भी पूजन करके जलमें डाल दे । इसके अतिरिक्त १० सेर तिल, १० सेर जौ और १० सेर गेहूँ १० ब्राह्मणोंको दे । परदार और परद्रव्यादिसे दूर रहे तथा ज्येष्ठ शुक्ला प्रतिपदमें प्रारम्भ करके दशमीतक एकोत्तर - वृद्धिसे दशहरास्तोत्रका पाठ करे, तो सब प्रकारके पाप समूल नष्ट हो जाते हैं और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है । चतुर्भुजां त्रिनेत्रां च सर्वावयवशोभिताम् । रत्नकुम्भसिताम्भोजवरदाभसत्कराम् ॥ ( जयसिंहकल्पद्रुमे गङ्गपूजनविधौ ) N/A References : N/A Last Updated : January 20, 2009 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP