भजन - दरपन देखत , देखत नाहीं ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


दरपन देखत, देखत नाहीं ।

बालापन फिर प्रकट स्याम कच, बहुरि स्वेत ह्वै जाहीं ॥

तीन रुप या मुखके पलटे, नहिं अयानता छूटी ।

नियरे आवत मृत्यु न सूझत, आँखें हियकी फूटी ॥

कृष्ण भगति सुख लेत न अजहूँ बृद्ध देअह दुखरासी ।

नागरिया सोई नर निहचै, जीवत नरकनिवासी ॥

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Last Updated : December 22, 2007

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