हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|सूरदास मदनमोहन| दरपन देखत , देखत नाहीं ... सूरदास मदनमोहन नंदजू मेरे मन आनंद भयो, ह... मेरे गति तुमहीं अनेक ... मधुके मतवारे स्याम , खो... चलौ री , मुरली सुनिये ,... दरपन देखत , देखत नाहीं ... हरि जू अजुगत जुगत करे... दुहुँ भाँतिनकौ मैं फल ... हमारी सब ही बात सुधार... भगति बैन हैं सब लोग ... किते दिन बिन बृंदाबन ... ब्रजबासीतें हरिकी सोभा ... ब्रज -सम और कोउ नहिं ... भजन - दरपन देखत , देखत नाहीं ... हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है। Tags : bhajannagaridasनागरीदासभजन भजन Translation - भाषांतर दरपन देखत, देखत नाहीं । बालापन फिर प्रकट स्याम कच, बहुरि स्वेत ह्वै जाहीं ॥ तीन रुप या मुखके पलटे, नहिं अयानता छूटी । नियरे आवत मृत्यु न सूझत, आँखें हियकी फूटी ॥ कृष्ण भगति सुख लेत न अजहूँ बृद्ध देअह दुखरासी । नागरिया सोई नर निहचै, जीवत नरकनिवासी ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 22, 2007 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP