चलौ री, मुरली सुनिये, कान्ह बजाई जमुना तीर ।
तजि लोकलाज कुलकी कानि गुरुजनकी भीर ॥
जमुनाजल थकित भयो बछा न पीवैं छीर ।
सुरविमान थकित भये थकित कोकिल-कीर ॥
देहकी सुधि बिसरि गई बिसरौ तनकौ चीर ।
मात तात बिसरि गये बिसरे बालक-बीर ॥
मुरली-धुनि मधुर बाजै कैसेकै धरौं धीर ।
सूरदास मदनमोहन जानत हौ परपीर ॥