मेरे गति तुमहीं अनेक तोष पाऊँ ।
चरन-कमल-नख-मनिपर बिषै-सुख बहाऊँ ।
घर घर जो डोलौं तौ हरि तुम्हैं लजाऊँ ॥१॥
तुम्हरौ कहाइ कहौ कौन कौ कहाऊँ ।
तुमसे प्रभु छाँड़ि कहा दीननकौं धाऊँ ॥२॥
सीस तुम्हैं नाय कहौ कौनकौ नवाऊँ ।
कंचन उर हार छाँड़ि काच क्यों बनाऊँ ॥३॥
सोभा सब हानि करुँ जगतकौं हसाऊँ ।
हाथीतें उतरि कहा गदहा चढ़ि धाऊँ ॥४॥
कुमकुमकौ लेप छाँड़ि काजर मुँह लाऊँ ।
कामधेनु घरमें तज अजा क्यों दुहाऊँ ॥५॥
कनकमहल छाँड़ि क्योंऽब परन कुटी छाऊँ ।
पाइन जो पेलौ प्रभु तौ न अनत जाऊँ ॥६॥
सूरदास मदनमोहन जनम जनम गाऊँ ।
संतनकी पनहीकौ रच्छक कहाऊँ ॥७॥