जावेगा हमना निरे हंसा ॥ध्रु०॥
राज करता जजराय रूप करती राणी ।
बेद पढतां पंडत जईये और अभिमानी ॥१॥
चंदाबी जायेगा सुरज बी जायेगा जाय धरतरी आकाश ।
आवेकी अकेल बलहारिया बदन ज्वावें रवी न पानी ॥२॥
पांच तत्त्वका बनावे पिंजर जाहामें वस्तु बिरानी ।
कहत कबीरा एक भक्तिसे जाईये रहजावे नाम निशाणी ॥३॥