हम तो भिकारी । मौजा करता लहरी ॥ध्रु०॥
पंच तत्त्वकी झोली सारी । रिद्धि सिद्धि प्यारी ।
चौदा रत्नें मेरे झोलीपर । रामनाम ललकारी ॥१॥
ये झोली गत हे न्यारी । रिद्धि सिद्धि प्यारी ।
भात भातके तुकडे मांगु । मौजा करता लहरी ॥२॥
पुरी फकीरी संतो तारी । नवखंड है फेरी दशावे द्वारीं अलख गावे ।
झोली हो गये भारी ॥३॥
कहत कबीर सुन भाई साधु । संतके है द्वारीं ।
रामनामके चरणीं लागे । गुरुकिल्ली है न्यारी ॥४॥