ओही हमारा सांई । और दुजा नहीं कोई ॥ध्रु०॥
प्रल्हाद बिभीखन नारद पराशर ज्याके धरत है ध्यान ।
ओही खडा मुरशद मौला देखो विठ्ठल सुजान ॥१॥
वैकूंठ छांड भीमा किनारे आये सुखके धाम ।
पुंडलीकसे भूल गया खडा वीटपर आराम ॥२॥
मीराबाईकी जेहर बाटी आपही लगाये होटीं ।
सावत्याके घुसे पोटीं आये जनीके रोटी ॥३॥
कहत कबीर सुनो भाई साधु । भाव भगतका भुका ।
आवर किसीकी प्रीत नहीं मीठा लगे तुलसी बुका ॥४॥