क्यां मांगू मेरे राम । थोडे जिवनमें क्यां मांगू ॥ध्रु०॥
घर नेहीं रहना अमर नहीं काया । थोङे जिवनमें मैं क्या मांगू ॥१॥
एक लक्ष पुत्र सवा लाख नाती । ते घर न रहे कोई दिवा ना वाती ॥२॥
मेघनाद पुत्र समुद्र जैसी खाई । कुंभकर्ण बिभीखन जैसे भाई ॥३॥
शंकर सरिखा पूजन आये । ब्रह्माजी करत है पाठ ॥४॥
क्यां करूं भीती क्यां करूं टाटी । न जाने कहां पडेगी मट्टी ॥५॥
क्यां करूं मेहेलमें क्या करूं ठाटी छोड गयो रावन लंकाको ठाठीं ॥६॥
कहत कबीरा सब छोङकर जाता । मैं तो एक तेरे चरनकुं चाहता ॥७॥