संक्रान्तिव्रत वङ्गऋषिसम्मत
मेषादि किसी भी संक्रान्तिका जिस दिन संक्रमण हो उस दिन प्रातः स्त्रानादिसे निवृत्त होकर ' मम ज्ञाताज्ञातसमस्तपातकोपपातकदुरितक्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तपुण्यफलप्राप्तये श्रीसूर्य नारायणप्रीतये च अमुकसंक्रमणकालीनमयनकालीनं वा स्त्रानदानजपहोमादिकर्माहं करिष्ये । ' - यह संकल्प करके वेदी या चौकीपर लाल कपड़ा बिछाकर अक्षतोंका अष्टदल लिखे और उसमें सुवर्णमय सूर्यनारायणकी २ मूर्ति - स्थापन करके उनका पञ्चोपचार ( स्त्रान, गन्ध, पुष्प, धूप और नैवेद्य ) से पूजन और निराहार, साहार, अयाचित, नक्त या एकभुक्त व्रत करे तो सब प्रकारके पापोंका क्षय, सब प्रकारकी अधि - व्याधियोंका निवारण और सब प्रकारकी हीनता अथवा संकोचका निपात होता हैं तथा प्रत्येक प्रकारकी सुख - सम्पत्ति, संतान और सहानुभूतिकी वृद्धि होती है ।
उपोर्ष्यैवं तु संक्रान्तौ स्त्रातो योऽभ्यर्चयेद्धरिम् ।
प्रातः पञ्चोपचारेण स काम्यं फलमश्रुते ॥ ( वसिष्ठ )