माघ शुक्लपक्ष व्रत - भानुसप्तमी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


भानुसप्तमी

( बहुसम्मत ) - यह माघ शुक्ल सप्तमीको होती है । प्राणिमात्रकी जीवनशक्तिको जीवित रखनेवाले प्रत्यक्ष ईश्वर सूर्यनारायणने मन्वन्तरके आदिमें इसी दिन अपना प्रकाश प्रकाशित किया था । अतः यह जयन्ती भी है । इस दिन सूर्यकी उपासनाके कई कृत्य कई प्रयोजनों और प्रकारोंसे किये जाते है । इस कारण इसके ' अर्क - अचला - रथ - सूर्य और भानुसप्तमी ' आदि कई नाम हैं । यह अरुणोदयव्यापिनी ली जाती हैं । यदि दो दिन अरुणोदयव्यापिनी हो तो पहली लेना चाहिये । स्त्रानके विषयमें यह स्मरण रहे कि जो माघ - स्त्रान करते हों, वे इसी दिन अरुणोदय ( पूर्व दिशाकी प्रातःकालीन लालिमा ) होनेपर और भानुसप्तमीनिमित्त स्त्रान करनेवालोंको सूर्योदयके बाद स्त्रान करना चाहिये । स्त्रान करनेके पहले आकके सात पत्तों और बेरके सात पत्तोंका कसुम्भाकी बत्तीवाले तिल - तैलपूर्ण दीपकमें रखकर उसको सिरपर रख और सुर्यका ध्यान करके गन्नेसे जलको हिलाकर दीपकको प्रवाहमें बहा दे । दिवोदासके मतानुसार दीपकके बदले आकके सा पत्ते सिरपर रखकर ईखसे जलको हिलाये और ' नमस्ते रुद्रपाय रसानां पतये नमः । वरुणाय नमस्तेऽस्तु ' जन्मान्तरार्जितम् । मनोवाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञाते च ये पुनः ॥ इति सप्तविध पापं स्त्रानान्ते सप्तसप्तिके । सप्तव्याधिसमाकीर्ण हर भास्करि सप्तधि ॥' इनका जप करके केशव और सूर्यको देखकर पादोदक ( गङ्गजल अथवा चरणामृत ) को जलमें डालकर स्त्रान करे तो क्षणभरमें पाप दूर हो जाते हैं । इसके बाद अधेंमें जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, सात अर्कपत्र और सात बदरीपत्र रखकर ' सप्तसप्तिवह प्रीत सप्तलोकप्रदीपन । सप्तम्या सहितो देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥' से सूर्यको और ' जननी सर्वलोकानां सप्तमी सप्तसप्तिके । सप्तव्याहतिके देवि नमस्ते सूर्यमण्डले ॥' से सप्तमीको अर्घ्य दे । इसी दिन तालक - दानके निमित्त नित्यनियमसे निवृत्त होकर चन्दनसे अष्टदल लिखे । पूर्वादिक्रमसे उसकी आठों कर्णिका ( कोणों ) पर शिव, रवि, भानु, वैसस्वत, भास्कर, सहस्त्राकिरण और सर्वात्मा - इनका यथाक्रम स्थापन और पूजन करके -ताम्रादिके पात्रसें काञ्चन ( कुण्डल ), घी गुड़ और तिल रखकर्लल वस्त्रसे ढाँके और गन्ध - पुष्पादिसे पूजन करके ' आदित्यस्य प्रसादेन प्रातःस्त्रानफलेन च । दुष्टदुर्भग्यदुःखन्घ्रं मया दत्तं तू तालकम् ॥' से ब्राह्मणको दे ' भानुसप्तमी ' के निमित्त प्रातःस्त्रानादिसे निश्वित होकर समीपमें सूर्यमन्दिर हो तो उसके सम्मुख बैठ अथवा सुवर्णादेके छोटी मूर्ति हो तो उसे अष्टदल कमलके बीचमे स्थापितकर ' ममाखिलकामनासिद्धयर्थे सूर्यनारणपीतये च सूर्यपूजनं करिष्ये ।' से संकल्प करके - ' ॐ सूर्याय नमः 'इस नाममन्त्नसे अथवा पुरुषसूक्तादिसे आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करे । ऋतुकालके पत्र, पुष्प, फल, खीर, मालपुआ दाल - भात या दध्योदनादिका नैवेद्य निवेदन करे और भगवानको सर्वाङगपूर्ण रथमें विराजमान करके गायन - वादन और स्वजनपरिजनादिको साथ लेकर नगर - भ्रमण करवाकर यथास्थान स्थापित करे । ब्राह्मणोंको खीर आदिक भोजन करवाकर दिनास्तसे पहले स्वयं एक बार भोजन करे । उस दिन तैल भोजन करवाकर दिनान्म्नसे पहले इस प्रकार प्रतिवर्षें तो तो सूर्योपरागादिमें कित्येके समान अक्षय पुण्य होता है ।

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Last Updated : January 01, 2002

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