बालधि n. एक शक्तिशाली ऋषि, जिसने पुत्रप्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी । इसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर देवों ने इसे वर मॉंगने के लिये कहा । किन्तु इसके द्वारा अमरपुत्र की मॉंग की जाने पर देवों ने इसे कहा, ‘इस सृष्टि की हर एक वस्तु नश्वर है, इसी कारण अमर पुत्र की अपेक्षा करना भी व्यर्थ है’। फिर सामने दिखाई देनेवाले पर्वत की ओर निर्देश करते हुए इसने देवताओं से कहा, ‘यह पर्वत जितने वर्ष रह सकेगा उतनी वायु का पुत्र आप मुझे प्रदान करे’। इसकी प्रार्थना के अनुसार, देवों ने इसे एक पुत्र प्रदान किया जिसका नाम मेधावी था । उसे यह बडे लाडप्यार से ‘पर्वतायु’ कहता था । बडा होने पर पर्वतायु देवों के वर का आश्रय ले कर अत्यंत उद्दण्ड बन गया । एक बार उसने धनुषाक्ष नामक महर्षि का बिना किसी कारण अपमान किया । उस समय महर्षि ने पर्वतायु को शाप दिया, ‘तुम भस्म हो जाओंगे’। महर्षि के इस शाप का पर्वतायु पर कोई भी असर न हुआ, एवं वह जीवित ही रहा । अपना शाप विफल हुआ यह देख कर धनुषाक्ष ऋषि को अत्यंत आश्चर्य हुआ । पश्चात् दिव्यदृष्टि से उसने पर्वतायु के बर का रहस्य जान लिया, एवं अपने तपोबल से एक भैंसा निर्माण कर उसके द्वारा वह पर्वत खुदवा डाल, जिसके उपर पर्वतायु की आयु निर्भर थी । उसी क्षण पर्वतायु की मृत्यु हो गयी
[म.व.१३४] । अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु पर बालधि ऋषि ने काफी विलाप किया ।