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यवक्रीत

   { yavakrīta }
Script: Devanagari

यवक्रीत     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
YAVAKRĪTA I   A sage. (See under Arvāvasu).
YAVAKRĪTA II   [Mahābhārata, Śānti Parva, Chapter 208, Verse 26] , refers to Yavakrīta who was the son of Aṅgiras and the supporter of the eastern land.

यवक्रीत     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक ऋषि   Ex. यवक्रीत भरद्वाज के पुत्र थे ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benযবক্রীত
gujયવક્રીત
kasیوکِرٚیٖت
kokयवक्रित
malയവ്ക്രീതന്‍
marयवक्रीत
oriଯବକ୍ରୀତ
panਯਵਕ੍ਰੀਤ
sanयवक्रीतः
urdیوکریت

यवक्रीत     

यवक्रीत n.  भरद्वाज ऋषि का एकलौता पुत्र, जिसने वेदों की विद्या को प्राप्त करने के लिए घोर तप किया था [म.व.१३५.१३] । ‘यवक्रीत’ का शाब्दिक अर्थ ‘यव दे कर खरीदा गया’ होगा है । इसे ‘यवक्री’ नामांतर भी प्राप्त था । इसका आश्रम स्थूलशिरस् ऋषि के आश्रम के पास था [म.व.१३५.१३८] । ज्ञान केवल अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है, तप से नही, इस तत्त्व के प्रतिपादन के लिए इसकी कथा महाभारत में दी गयी है ।यवक्रीत एवं इसके पिता दोनों तपोनिष्ठ व्यक्ति थे, किंतु इन दोनों को ब्राह्मणलोग आदर दी दृष्टि से न देखते थे, क्यों कि, इनमें की ऋचाओं के निर्माण करने की शक्ति न थी ।
यवक्रीत n.  यवक्रीत ने वेदज्ञान प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया, जिससे घबरा कर इंद्र ने इसे सूचना की कि, यह अपने इस उद्देश्य की प्राप्त के लिए व्यर्थ प्रयत्न न करे । किंतु यह प्रचंड अग्नि को प्रज्वलित कर के वेदप्राप्ति की लिप्सा में कठोर तप करता ही रहा । इंद्र के बार बार मना करने पर इसने उसे उत्तर दिया, ‘अगर तुम मेरी मनःकामना पूरी न करोगे, तो मैं इससे भी कठिन तप कर कें, अपने प्रत्येक अंग को छिन्नभिन्न कर, जलती हुए अग्नि में होम कर दूँगा ।’
यवक्रीत n.  यवक्रीत के न मानने पर, इंद्र ने वृद्ध ब्राह्मण का वेष धारण किया, एवं वह संध्या के समय घाट पर जाकर, भागीरथी में मुट्टी भर भर कर बालू डालने लगा । उसे ऐसा करते देख कर, इसने उसका कारण पूछा । तब इंद्ररुपधारी ब्राह्मण न कहा, ‘भागीरथी में बालू डाल डाल कर, लोगों के लिए मै एक पूल निर्माण करना चाहता हूँ’। इसने उस ब्राह्मण की खिल्ले उडायी, एवं उसको इस निरर्थक कार्य को न करने की सलाह देते हुए कहा, ‘यह भागीरथी की धारा का प्रवाह मुट्टी भर मिट्टी से तुम नहीं रुका सकते । सेतु बॉंधने की कोरी कल्पना में तुम अपने श्रम को व्यर्थ न गवॉंओं’ । तब ब्राह्मण ने कहा, ‘जिस प्रकार तुम वेदज्ञान की प्राप्ति के लिए तप कर रहे हो, उसे प्रकार मैं भी लगा हूँ । तब हँसने की बात ही क्या?’यह सुन कर यवक्रीत ने इंद्र को पहचान लिया, तथा उससे क्षमा मॉंगते हुए वरदान मॉंगा, ‘मेरी योग्यता अन्य सारे ऋषिओं से श्रेष्ठ हो’ । तब इंद्र ने इसके द्वार मॉंगे गये सभी वर देते हुए कहा, ‘तुम्हें एवं तुम्हारे पिता में वेदों के सृजन करने की शक्ति जागृत होगी । तुम अन्य लोगों से श्रेष्ठ होंगे, तथा तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होगे’ [म.व.१३५] ।इन्द्र के द्वारा वर प्राप्त कर यह अपने पिता भरद्वाज के पास आया, एवं उसे वरप्राप्ति की कथा सविस्तार बतायी । भरद्वाज ने इसकी गर्वपूर्ण वाणी को सुन कर, इसकी अभिमानभावना को नाश करने के लिए, इसे बालधि ऋषि तथा उसके पुत्र मेधाविन् की कथा सुनायी, एवं इसे उपदेश दिया की, गर्व करने के क्या दुष्परिणाम होते हैं ।
यवक्रीत n.  जिस स्थान पर यह तथा इसके पिता रहते थे, वहीं पास में ही विश्वामित्र ऋषि का पुत्र रैभ्य भी आश्रम बना कर, अर्वावसु तथा परावसु नामक अपने पुत्रों के साथ रहता था । रैभ्य के साथ उसकी स्नुषा, परावसु की परम सुंदरी पत्नी भी रहती थी । एक बार घूमते घूमते यह रैभ्य आश्रम के पास आया, तथा स्नुषा के रुप को देख कर इतना अधिक पागल हो उठा कि, उसके बार बार मना करने पर भी, इसने उसके साथ बलात्कार किया । बाद को स्नुषा ने सारी कथा रो रोकर अपने श्वसुर रैभ्य ऋषि को बतायी ।यवक्रीत की यह आवारगी एवं निर्लज्ज कामातुरता की कहानी सुन कर, रैभ्य क्रोध में तमतमाने लगा । उसने अपनी दो जटांये उखाड कर, उन्हें अग्नि में होम कर, एक राक्षस तथा एक सुंदर स्त्री का निर्माण किया, एवं उन्हे यवक्रीत का नाश करने की आज्ञा की । उस कृत्यारुपी सुन्दर स्त्री ने तप करते हुए यवक्रीत को मोहित किया, एवं इसका समस्त तेज ले लिया । तब राक्षस अपने शूल को ले इस पर दौडा । वह राक्षस को भस्म करने के लिए पानी धूँडने लगा । उसे न देख कर भागता भागता यह नदियों के पास गया, किंतु वहॉं नदीयॉं में भी पानी न था । तब इसने पिता की होमशाला में आ कर, उसमें घुस कर, प्राण बचाना चाहा । किंतु आश्रम के अंध शूद्र के द्वारा यह बाहर ही रो लिया गया । उसी समय अवसर देख कर, राक्षस ने अपने शूल से प्रहार कर इसके वक्षःस्थल को विदीर्ण किया, एवं इसका वध किया । इस प्रकार रैभ्य ऋषि की श्रमपूर्वक संपादित की हुयी विद्या के आगे यवक्रीत की वरप्राप्ति की विद्या ठहर न सकी ।बाद में ब्रह्मयज्ञ कर के भरद्वाज मुनि आश्रम आये, तथा यह देख कर कि, आज होमशाला की अग्नि प्रज्वलित नहीं है, उन्होंने इसका कारण अपने गृहरक्षक शूद्र से पूछा । उस शूद्र ने सारी कथा कह सुनायी, तथा भरद्वाज तुरंत ही समझ गये कि, मना करने पर भी यह अवश्य ही रैभ्य के आश्रम गया होगा । पुत्र को धरती पर पडा हुआ देख कर भरद्वाज ने कहा, ‘हे मेरे एकलौते पुत्र, तुम्हें बार बार मना किया, किंतु तुम न माने । वेदों के ज्ञान को पा कर, तुम घमण्डी, तथा कठोर बन कर पापकर्म से रत हुए हो । आज मैं पुत्रशोक में कितना विह्रल हूँ । तुम्हारी मृत्यु तो हुई, किंतु तुमको मरवानेवाला रैभ्य भी अपने पुत्र के द्वारा ही मारा जायेगा’ । इस प्रकार विलाप करते हुए भरद्वाज मुनि ने रैभ्य को शाप दिया, एवं मृत पुत्र के साथ ही अग्नि में प्रविष्ट हो कर, उसने अपनी जान दे दी [म.व.१३७]
यवक्रीत n.  कालांतर में भरद्वाज के द्वारा दिये गये शाप के कारण, रैभ्य अपने पुत्र परावसु के द्वारा मारा गया । यह देख कर, रैभ्य के परमसुशील पुत्र अर्वावसु ने उग्र तप कर के सूर्य तथा देवों को प्रसन्न किया । उसने उनके द्वारा वर प्राप्त कर, भरद्वाज, यवक्रीन्त तथा रैभ्य को जीवित कर पितृहत्या के दोष से अपने बंधु परावसु को मुक्त किया एवं दो अन्य वर भी प्राप्त किये । पहला वर मॉंगा कि, ‘मेरे पिता भरद्वाज के द्वारा किये गये वध का स्मरण उसे न रहे,’ तथा दूसरा मॉंगा कि, ‘मुझे जो वेद को प्रकाशित करनेवाला सूर्यमंत्र प्राप्त हुआ है, वह हमारे परिवार एवं परम्परा में सदैव बना रहे’।बाद में इंद्रादि देवों ने यवक्रीत से बताया, ‘रैभ्य ने गुरु से वेदों का अध्ययन किया है, इसलिए सामर्थ्य मे वह तुमसे श्रेष्ठ है’ । भरद्वाज ने अर्वावसु का अभिनंदन किया, तथा उसके इस उपकार के लिए बार बार प्रशंसा की । अंत में यह अपने पिता के साथ उसके आश्रम रहने गया [म.व.१३८]

यवक्रीत     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  एक ऋषी   Ex. यवक्रीत हे भरद्वाजचे पुत्र होते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benযবক্রীত
gujયવક્રીત
hinयवक्रीत
kasیوکِرٚیٖت
kokयवक्रित
malയവ്ക്രീതന്‍
oriଯବକ୍ରୀତ
panਯਵਕ੍ਰੀਤ
sanयवक्रीतः
urdیوکریت

यवक्रीत     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
यव—क्रीत  m. m. ‘purchased with barley’, N. of a son of भरद्-वाज, [MBh.] ; [R. &c.]
ROOTS:
यव क्रीत

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