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कल्कि n. कलियुग में बौद्धावतार के बाद होनेवाला अवतार । शंभल ग्रामनिवासी विष्णुयशस् नामक ब्राह्मण के घर में, दसवॉं अथवा ग्यारहवॉं अवतार इसका होगा । कलियुग में फैले हुए अधर्म का यह नाश करेगा । सब दैत्यरुप म्लेच्छों का यह पूर्णनाश करेगा । संपूर्ण पृथ्वी म्लेच्छमय होने के बाद, हाथ में लंबी तलवार ले कर, देवदत्त अश्व पर बैठ कर, तीन रात में यह दैत्यों का संहार करेगा । इस समय कई कोटि राजाओं का वध होगा । कली की सजा तथा उसके नाश के लिये ही इसका अवतार होगा [म.व.१८८.८९] ;[पद्म. उ. २५२] ;[ब्रह्म.२१३.१६४] ;[ह.वं. १.४१.६४] ;[भा.१.३,२.७.१२.२] । इस अवतार के समय कृतयुग का प्रारंभ होगा [विष्णुधर्म.१.७४] । इस प्रकार अवतारकार्य समाप्त कर के, यह समाधिस्थ होगा [ब्रह्मैव.२.७] । उस समाधि से योगाग्नि का उद्भव होगा तथा प्रलय होगा । कलि बली के पास जायेगा । पुनः कर्मभूमि निर्माण हो कर, वर्णोत्पत्ति भी होगी । वैवस्वत मनु इसकी आज्ञा से अयोध्या में राज्य करेगा [भवि. प्रति.४.२६] । यह अदृश्य, पराशर गोत्री, ब्राह्मणसेनायुक्त, तथा याज्ञवल्क्य की सहायता से युक्त होगा [ब्रह्मांड. ३.७३.१०४] ; विष्णुयशस् देखिये ।
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कल्किः [kalkiḥ] The tenth and last incarnation of Viṣṇu in his capacity of the destroyer of the wicked and liberator of the world from its enemies; (Jayadeva, while referring to the several axatāras of Viṣṇu, thus refers to the last or Kalki avatāra: म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालं धूमकेतुमिव किमपि करालम् । केशवधृतकल्किशरीरं जय जग- दीश हरे ॥ [Gīt.1.1.] )
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कल्कि m. m.
N. of the tenth incarnation of विष्णु when he is to appear mounted on a white horse and wielding a drawn sword as destroyer of the wicked (this is to take place at the end of the four युगs or ages), [MBh. &c.]
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-पुराणम् N. N. of a Purāna.
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