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इक्ष्वाकुः [ikṣvākuḥ] 1 N. of the celebrated ancestor of the Solar kings who ruled in Ayodhyā; (he was the first of the Solar kings and was a son of Manu Vaivasvata; (cf. Bhāg. क्षुवतस्तु मनोर्जज्ञ इक्ष्वाकुर्घाणतः सुतः); इक्ष्वाकुवंशोऽभि- मतः प्रजानाम् [U.1.44.]
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इक्ष्वाकु n. (सू.) वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से ज्येष्ठ [म.आ.७०.१३] ;[भवि. ब्राह्म. ७९] । इसकी उत्पत्ति के संबंध में जानकारी इस प्रकार मिलती हैं । एक बार मनु को छींक आयी । उस छींक के साथ ही यह लडका सम्मुख खडा हुआ । इस पर से इसका नाम इक्ष्वाकु पडा [ह. वं.१.११.दे. भा. ७.८] ;[भा. ९.६] ;[ब्रह्म. ७.४४] ;[विष्णु.४.२.३] । मनु के कहा कि, तुम एक राजवंश के उत्पादक बनो, दंड की सहायता से राज्य करो, तथा व्यर्थ ही किसी को दंड मत दो । अपराधियों को दंड देने से स्वर्गप्राप्ति होती है । इस तरह का उपदेश दे कर, जो कार्य करना होगा उसकी रुपरेखा मनु ने इसे बतायी । मनु ने पृथ्वी के दस भाग बनाये । वसिष्ठ की आज्ञानुसार वे सुद्युम्न को न दे कर, इक्ष्वाकु को दिये [वायु.८५.२०] । मनु ने मित्र तथा वरुण देवताओं के लिये याग किया । इस कारण इक्ष्वाकु तथा अन्य पुत्र प्राप्त हुए, ऐसी कथा है [विष्णु.४.१] । वसिष्ठ इक्ष्वाकु राजा का कुलगुरु था [म.आ.६६.९-१०] ;[ब्रह्मांड. ३.४८.२९] ;[पद्म. सृ. ८.२१,४४.२३७.] ;[विष्णु. ४.३.१८] ;[वा.रा.उ.५७] । सूर्यवंश में प्रत्येक राजा के समय, वसिष्ठ के कुलगुरु होने का निर्देश है । इक्ष्वाकु, अयोध्या का पहला राजा था [वा.रा.अयो. ११०] । इसे मध्यदेश मिला था [ह. वं. १.१०] ;[लिङ्ग १.६५.२८] ;[ब्रह्मांड. ३.६०.२०] ;[मत्स्य. १२.१५] । यह क्षुप का पुत्र है ऐसा भी कहीं कहीं उल्लेख हैं । क्षुप ने प्रजापालनार्थ इसे एक खड्ग दी थी [म. शां. १६०. ७२] ;[म. आश्व. ४.३] । वंशावली में प्रत्यक्ष क्षुप का उल्लेख नही है । एक समय इक्ष्वाकु यात्रा करते हिमालय की तलहटी के पास आया । वहॉं जप करनेवाला कौशिक नाम का ब्राह्मण था । उसका यम, ब्राह्मण, काल तथा मृत्यु के साथ, निष्काम जप के संबंध में संवाद हुआ । उस समय इक्ष्वाकु वहीं था [म.शां.१९२] । इक्ष्वाकु कुल में पैदा हुए व्यक्तियों के लिये भी, इक्ष्वाकु कुलनाम दिया गया है । अलंबुषा के पति का नाम तृणबिंदु न हो कर इक्ष्वाकु था, ऐसा निर्देश है [वायु. ८६.१५] ;[वा.रा.बा.४७.११] । इक्ष्वाकु के सौ पुत्र थे [ह. वं. १.११] ;[दे. भा. ७.९] ;[भा. ९, ६] ;[म. अनु.५] ;[म. आ. ७५] । इसके ज्येष्ठ पुत्र का विकुक्षि था । इक्ष्वाकु के पश्चात यही अयोध्या का राजा हुआ । विकुक्षि से निमिवंश निर्माण हुआ । इक्ष्वाकु को दंडक नामक एक विद्याविहीन पुत्र भी था । इसी के नाम से दंडकारण्य बना [वा.रा.उ.७९] ;[भा. ९.६] ;[विष्णु. ४.२] । इसके दसवें पुत्र का नाम दशास्व था । वह माहिष्मती का राजा था [म. अनु. २.६] । विष्णु पुराण में इक्ष्वाकु के एक सौ एक पुत्र होने का निर्देश है [विष्णु. ४.२] । इक्ष्वाकु ने अपना राज्य सौ पुत्रों को बॉंट दिया [म. आश्व.४] । इसने शकुनि प्रभृति ५० पुत्रों को उत्तरभारत तथा शांति प्रभृति ४८ पुत्रों को, दक्षिणभारत का राज्य दिया । अयोध्या में इक्ष्वाकु का राज्य तथा वंश बहुत समय तक रहा । ईक्ष्वाकु वंश में बहुत से महान पुरुष हुए, इस कारण बहुत सारे पुराणों में इनकी वंशावलि मिलती है । पुराणों में दी गयी वंशावालियों में, बहुत साम्य होते हुए भी, रामायण में दी गई वंशावलि से वे भिन्न हैं । पुराणों में इक्ष्वाकु से ले कर, भारतीय युद्ध के बृहद्वल तक भागवतानुसार ८८, विष्णुमतानुसार ९३, तथा वायुमतानुसार ९१, पीढियॉं होती है । रामायणानुसार इनमें संख्या की अपेक्षा व्यक्तियों में अधिक भिन्नता है । संशोधकों के मतानुसार वंशावलि की दृष्टि से पुराणों का वर्णन ही अधिक न्यायसंगत होने की संभावना है । यद्यपि अधिक विस्तार से इसकी वंशावलि उपलब्ध है तथापि प्रमुख पुरुषों की है, सब पुरुषों की नही ऐसा वहॉं निर्देश है । (सुमित्र, राम तथा ऐक्ष्वाक देखिये) । इसकी पत्नी सुदेवा [पद्म. भू.४२] ।
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(pl.) Descendants of Ikṣvāku; गलितवयसामिक्ष्वाकूणामिदं हि कुलव्रतम् [R.3.7.]
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इक्ष्वाकु m. m. ([[RV.] ]) and
इ॑क्ष्वाकु ([[AV.] ]). N. of a man, [RV. x, 60, 7] ; [AV. xix, 39, 9]
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