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धीरधी n. काशी का एक शिवभक्त ब्राह्मण । अनन्य शिवोपासना करने के कारण, शिवजी इसपर प्रसन्न हुएँ, एवं इसकी हरप्रकार सहायता करने लगे । शिवजी का इस पर प्रेम देख कर, शिवगणों को आश्चर्य हुआ । तब इसकी पूर्वजन्म की कहानी शिवजी ने अपने गणों से कथन की । शिवजी बोले, ‘यह ब्राह्मण पूर्वजन्म में एक हंस था । एक बार यह एक सरोवर के उपर से जा रहा था । यकायक यह थक गया, एवं जमीन पर गिर पडा । पश्चात् इसका सफेद रंग बदल कर, यह कृष्णवर्ण हो गया । इसका सफेद रंग बदलने का कारण, सरोवर में स्थित एक कमलिनी ने इसे बताया, एवं गीता के दसवें अध्या का पठन करते हुए शिवोपासना करने को उसे कहा । इस पुण्यसंचय के कारण, उस हंस को अगले जनम में ब्राह्मणजन्म प्राप्त हुआ है’। शिवजी ने आगे कहा, ‘पूर्वकथा में निर्देश किया हुआ हंस, अपने पूर्वजन्म में, ब्राह्मण ही था । किंतु गलती से गुरु को पादस्पर्श करने के पाप के कारण, उसे हंस की योनि प्राप्त हुई’। पश्चात शिवकृपा से यह जीवन्मुक्त हुआ, एवं स्वर्ग चला गया [पद्म.उ.१८४] ।
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DHĪRADHĪ A brahmin devotee of Śiva. He lived in Kāśī. Because he meditated on Śiva alone, Śiva was pleased with him and helped him in various ways. The gaṇas of Śiva were amazed at Śiva's partiality for Dhīradhī. Paramaśiva told them the story of the former birth of Dhīradhī. “This Brahmin was a swan in his former life. Once he was flying over a lake when he became tired and fell down. His colour became black. Then Kamalinī, another swan who dwelt in the same lake told him to recite the tenth Chapter of Gītā, and to meditate on Śiva. Because the swan did that holy act, he was born a Brahmin in his next birth. Though he was a Brahmin in his previous birth, he kicked his teacher and for that fault he had to take birth as a swan. Later, because of the love of Śiva, Dhīradhī attained heaven. [Padma Purāṇa, Uttara Khaṇḍa, Chapter 184] .
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