शाट्यायनि n. एक आचार्य, जो ‘शाट्यायन ब्राह्मण’ एवं ‘शाट्यायन गृहसूत्र’ आदि ग्रंथों का रचयिता माना जाता है । इनमें से ‘शाट्यायन ब्राह्मण’ आज उपलब्ध नहीं है ।
शाट्यायनि n. एक गुरु के नाते इसका निर्देश ब्राह्मण ग्रंथों में अनेक बार प्राप्त है
[श. ब्रा. ८.१.८.९, १०.४.५.२] ;
[जै. उ. ब्रा. १.६.२, ३०.१, २.२.८, ४.३] । ‘जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण’ में इसका सही नाम शंग दिया है, एवं शाट्यायन इसका पैतृक नाम बताया गया है, जो इसे ‘शाट्य’ का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ था । इस ग्रंथ में इसे ज्वालायन का शिष्य कहा गया है
[जै. उ. ब्रा. ४.१६.१] । ‘सामविधान ब्राह्मण’ में इसे बांदरायण का शिष्य कहा गया है ।
शाट्यायनि n. शाट्यायन ब्राह्मण में प्राप्त अनेक कथा सायणभाष्य में पुनरुध्दृत की गयी है । इस ग्रंथ के अनेक उद्धरण जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण में भी प्राप्त है
[जै. उ. ब्रा. ९.१०, ३.१३.६, २८.५] । ‘आश्र्वलायन श्रौतसूत्र’ में इसके अभिमतों का निर्देश ‘शाट्यायनक’ नाम से प्राप्त है
[आश्र्व. श्रौ. १.४.१३] । आर्टेल के अनुसार, यह ब्राह्मण ग्रन्थ ‘जैमिनीय ब्राह्मण’ से काफ़ी मिलता जुलता था ।
शाट्यायनि n. इस ग्रंथ का प्रमुख प्रणयिता भी शाट्यायनि माना जाता है । इस ग्रन्थ में प्राप्त गुरुपरंपरा के अनुसार, यह ग्रन्थ सर्वप्रथम इंद्र ने ज्वालायन नामक आचार्यों को प्रदान किया, जिसने वह अपने शिष्य शाट्यायन को सिखाया । आगे चल कर यही ग्रंथ शाट्यायन ने अपने शिष्य राम क्रातुजातेय वैयाघ्रपद्म को प्रदान किया । इन सारे आचार्यों में से, शाट्यायनि ने इस ग्रन्थ को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त करायी
[जै. उ. ब्रा. ४.१६-१७] ।
शाट्यायनि n. इसके अनुगामी ‘शाट्यायनिक,’ ‘शाट्यायनक’ अथवा ‘शाट्यायनिन’ नाम से प्रसिद्ध थे, जिनका निर्देश सूत्रग्रंथों में, एवं ‘शाट्यायन ब्राह्मण’ में प्राप्त है
[ला. श्रौ. ४.५.१८, १.२.२४] ;
[आ. श्रौ. ५. २३.३] ;
[आश्र्व. श्रौ. १.४.१३] ।
शाट्यायनि II. n. विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।