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शांतनव

   
Script: Devanagari

शांतनव     

शांतनव n.  एक व्याकरणकार, जो वेदों के स्वर के संबंध में विचार करनेवाले ‘फिट् सूत्रों’ का रचयिता माना जाता है । इसके द्वारा रचित सूत्रों के अंत में ‘शांतनवाचार्य प्रणीत’ ऐसा स्पष्ट निर्देश प्राप्त है । इसका सही नाम शंतनु था, किंतु ‘तद्धित’ प्रत्यय का उपयोग कर इसका ‘शांतनव’ नाम प्रचलित हुआ होगा । इसके नाम से यह दक्षिण भारतीय प्रतीत होता है ।
शांतनव n.  ‘फिट्’ का शब्दशः अर्थ ‘प्रातिपदिक’ होता है । प्रतिपदिकों के लिए नैसर्गिक क्रम से उपयोजित ‘उदात्त’, ‘अनुदात्त’, एवं ‘स्वरित’ स्वरों की जानकारी प्रदान करने के लिए इन सूत्रों की रचना की गयी है । इन सूत्रों की कुल संख्या ८७ हैं, जो निम्नलिखित चार पादों (अध्यायों) में विभाजित की गयी हैः-- १. अन्तोदात्त; २. आद्युदात्त; ३. द्वितीयोदात्त; ४. पर्यायोदात्त।
शांतनव n.  पतंजलि के व्याकरणमहाभाष्य में इन सूत्रों के उद्धरण प्राप्त हैं [महा. ३.१.३, ६.१.९१, १२३] । इसके अतिरिक्त काशिका, कैय्यट, भट्टोजी दीक्षित, नागेशभट्ट आदि के मान्यवर व्याकरणविषयक ग्रंथों में भी इन सूत्रों का निर्देश प्राप्त है । व्याकरणशास्त्रीय दृष्टि से पाणिनि एवं शांतनव ‘अव्युत्पत्ति पक्षवादी’ माने जाते हैं, जो शाकटायन के सर्व शब्द ‘धातुज’ है (सर्व धातुजं), इस सिद्धांत को मान्यता नहीं देते हैं (शाकटायन देखिये) । इसी कारण हर एक शब्दप्रकृति के स्वर नमूद करना वे आवश्यक समझते हैं। हर एक शब्द के ‘प्रकृतिस्वर’ गृहीत समझ कर शांतनव ने अपनी ‘फिट्सूत्रों’ की रचना की है, एवं शांतनव के द्वारा यह कार्य पूर्व में ही किये जाने के कारण, पाणिनि ने अपने ग्रंथ में वह पुनः नहीं किया है । इसी कारण शांतनव आचार्य पाणिनि के पूर्वकालीन माना जाता है । इसकी परंपरा भी पाणिनि से स्वतंत्र थी, जिसका अनुवाद पाणिनि के ‘अंगभूत परिशिष्ट’ में पाया जाता है ।
शांतनव n.  इसके ‘फिट्सूत्रों’ में अनेकानेक पारिभाषिक शब्द पाये जाते हैं, जो पाणिनीय व्याकरण में अप्राप्य हैं। इनमें से प्रमुख शब्दों की नामावलि एवं उनका शब्दार्थ नीचे दिया गया हैः-- अनुच्च (अनुदात्त); अष् (अच्); नप् (नपुंसक); फिष् (प्रतिपादिक); यमन्वन् (वृद्ध); शिट् (सर्वनाम); स्फिग् (लुप्); हय् (हल्) ।
शांतनव n.  उदात्त, अनुदात्तादि स्वर केवल वैदिक संहिताओं के उच्चारणशास्त्र के लिए आवश्यक हैं, सामान्य संस्कृत भाषा के उच्चारण के लिए इन स्वरों की कोई आवश्यकता नहीं है, ऐसा माना जाता है । किंतु इन स्वरों की संस्कृत भाषा के उच्चारण के लिए भी नितांत आवश्यकता है, यह सिद्धांत शांतनव के ‘फिट्सूत्रों’ के द्वारा सर्वप्रथम प्रस्थापित किया गया, एवं आगे चल कर ‘पाणिनीय व्याकरण’ ने भी इसे मान्यता दी।
शांतनव n.  $‘फिट्सूत्रों’ में प्राप्त ८७ सूत्रों में से केवल पॉंच ही सूत्रों में वैदिक शब्दों के (छन्दसि) स्वरों की चर्चा की गयी है, बाकी सभी सूत्रों में प्रचलित संस्कृत भाषा एवं वेद इन दोनों में प्राप्त संस्कृत शब्दों के स्वरों की एवं उच्चारण की चर्चा प्राप्त है । इसी कारण ‘फिट्सूत्र’ केवल वैदिक व्याकरण का ही नहीं, बल्कि ‘पाणिनीय व्याकरण’ का भी एक महत्त्वपूर्ण विभाग माना जाता है । पाणिनीय व्याकरण के ‘शब्दप्रक्रिया’, ‘धातुज शब्दों का अध्ययन’, ‘लिंगज्ञान’, ‘गणों का अध्ययन’, ‘शब्दों का उच्चारशास्त्र’ आदि प्रमुख विभाग है, जिनके अध्ययन के लिए क्रमश; ‘अष्टाध्यायी,’ ‘उणादिसूत्र’ ‘लिंगानुशासन’ ‘गणपाठ’ ‘शिक्षा’ आदि ग्रंथों की रचना की गयी है । स्वरों के उच्चारणशास्त्र की चर्चा करनेवाला शांतनवकृत ‘फिट्सूत्र’ पाणिनीय व्याकरणशास्त्र के इसी परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ प्रतीत होता है ।

शांतनव     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
शांतनव  mfn. mf()n. written or composed by शंतनु, [Cat.]
शांतनव  m. m.patr. of भीष्म (as son of king शंतनु, the reputed great uncle of the पाण्डवs), [MBh.]
N. of a son of मेधातिथि, [VP.]
°वाचार्य   of various writers (esp. of the author of the फिट्सूत्रs; cf.)
शांतनव  n. n.N. of the द्वीप ruled by शांतनव, [VP.]

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