वृद्धकन्या n. एक बालब्रह्मचारिणी, जो कुणि गर्ग महर्षि की कन्या थी । इसके पिता ने इसका विवाह करना चाहा, किन्तु यह जन्म से ही अत्यंत विरक्त होने के कारण, इसने विवाह करने से इन्कार कर दिया।
वृद्धकन्या n. आगे चल कर इसने घोर तपस्या प्रारंभ की। किन्तु नारद इसे आ मिला, एवं उसने इसे कहा कि, विवाहसंस्कार किये बगैर स्त्री के लिए स्वर्गलोक की प्राप्ति असंभव है । नारद के कथनानुसार, इसने विवाह करने का निश्र्चय किया, एवं अपना आधा पुण्य प्रदान करने की शर्त पर गालव ऋषि के शिष्य शृंगवत् ऋषि से विवाह किया। विवाह करते समय शृंगवत् ने इसे कहा था कि, केवल एक रात के लिए ही वह इसके साथ रहेगा। अपने पति के इस शर्त के अनुसार, इसने एक रात के लिए वैवाहिक जीवन व्यतीत किया, एवं तत्पश्र्चात् अपनी तपस्या के बल से यह स्वर्गलोक गयी
[म. श. ५१] ।
वृद्धकन्या n. अपने कुरुक्षेत्र में स्थित जिस आश्रम में इसने तपस्या की थी वहाँ आगे चल कर ‘वृद्धकन्यातीर्थ’ नामक तीर्थस्थान का निर्माण हुआ। भारत के तीर्थस्थानों का यात्रा करता हुआ बलराम इस तीर्थस्थान में आया था, जहाँ उसे शल्यवध की वार्ता ज्ञात हुई थी ।