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पूतना n. एक राक्षसी, जो कंस की बहन, एवं परोदर राक्षस की पत्नी थी । कंस ने इसे श्रीकृष्ण का वध करने के लिये गोकुल भेजा था । गोकुल में वह नवतरूणी स्त्री का रुप धारण कर, अपने स्तनों में विष लगाकर, वहॉं के बच्चों को अपने स्तन से दूध पिलाकर, उनका वध करने लगी । इस प्रकार गोकुलग्राम के न जाने कितने बालकों की जान लेकर, श्रीकृष्ण की भी इसी भॉंति मरने की इच्छा से, एक दिन यह नंद के घर गयी । इसने अपने स्तनों में श्रीकृष्ण को लगाया ही था, कि बालक कृष्ण ने दूध के साथ इसके प्राणों को भी चूसना शुरु कर दिया । पूतना वेदना में व्याकुल होकर तडपने लगी, और प्राण त्याग दिये [म.स.परि.१ क्र.२१ पंक्ति ७५९] ;[भा.१०.६] ;[पद्म. ब्र.१३] ;[विष्णु.५.५.] ;[ब्रह्मवै.४.१०] । हरिवंश के अनुसार, यह कंस की दाई थी । इसने पक्षिणी का रुप धारण कर, गोकुल में प्रवेश किया था । दिनभर आराम कर, रात में सब के सो जाने पर, कृष्ण के मुख में दूध पिला कर मारने के हेतु से इसने अपना स्तन दिया । कृष्ण ने दूध के साथ, इसके प्राणों का शोषण कर, इसका वध किया [ह.वं.२.६] । आदिपुराण के अनुसार, यह कैतवी नामक राक्षस की कन्या, एवं कंस राजा की पत्नी की सखी थी । इसकी बहन का नाम वृकोदरी था । कंस के आदेशनुसार गोकुल में जाकर, दस बारह दिन के आयुवाले बच्चो को कालकूटयुक्त स्तन के दूध को पिला कर, इसने उनका नाश किया । बाद में जब कृष्ण को मारने की इच्छा से यह उनके घर गयी, तो कृष्ण ने इसका वध किया [आदि.१८] । पूर्वजन्म में यह बलि राजा की कन्या थी, और इसका नाम रत्नमाला था । बलि के यज्ञ के समय, वामन भगवान् को देखकर इसकी इच्छा हुयी थी कि, वामन मेरा पुत्र हो, और इसे मैं अपना स्तनपान कराऊँ । इसकी यह इच्छा जान कर, वामन ने कृष्णावतार में कृष्ण के रुप में इसका स्तनपान कर, इसे मुक्ति प्रदान किया था [ब्रह्मवै ४.१०] । इसे राक्षसयोनि क्यों प्राप्त हुयी? इसकी कथा आदि पुराण में इस प्रकार दी गयी हैं । एक बार कालभीरु ऋषि अपनी कन्या चारुमती के साथ कहीं जा रहे थे कि, उन दोनों ने सरस्वती के तट पर तपस्या करते हुये कक्षीवान् ऋषि को देखा । कक्षीवान के स्वरुप को देखकर, एवं उसे योग्य वर समझकर, कालभीरु अपनी पुत्री चारुमती को शास्त्रोक्त विधि से उसे अर्पित की । बाद में, कक्षीवान् तथा चारुमती दोनो सुखपूर्वक रहने लगे । एकबार कक्षीवान् तीर्थयात्रा को गया था । इसी बीच एक शूद्र ने चारुमती को अपने वंश में कर लिया । आते ही कक्षीवान् को अपनी पत्नी का दुराचरण ज्ञात हुआ, तथ उन्होंने उसे राक्षसी बनने का शाप दिया । चारुमती के अत्यधिक अनुनय-विनय करने पर कक्षीवान् ने कहा, ‘जाओ, कृष्ण के द्वारा ही तुम्हें मुक्ति प्राप्त होगी ।’ कक्षीवान् ऋषि के उपर्युक्त शाप के कारण, चारुमती को पूतना राक्षसी का जन्म प्राप्त हुआ [आदि.१८] ।
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पूतना f. af. See next.
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पूतना f. bf.
N. of a female demon (said to cause a partic. disease in children, and to have offered her poisoned breast to the infant कृष्ण who seized it and sucked away her life; regarded also as one of the मातृs attending upon स्कन्द, and as a योगिनी), [MBh.] ; [Hariv.] ; [Kāv.] ; [Pur.]
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a kind of disease in a child (ascribed to the demon
P° ), [W.]
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