मांडूकेय n. एक आचार्यसमूह, जो ऋग्वेदपाठ के एक विशेष शाखा का प्रणयिता माना जाता है । ऐतरेय आरण्यक के ‘मांडूकेयीय’ नामक अध्याय की रचना इन्हीके द्वारा की गयी है
[ऐ.आ.३.२.६] ;
[सां.आ.८.११] । ऐतरेय आरण्यक में इस समूह के आचार्यो के अनेक मत प्राप्त हैं, जिनमें संहिता की व्याख्या दी गयी है । उस व्याख्या के अनुसार, पृथ्वे को पूर्वरुप संहिता, द्यौ को उत्तररुप संहिता, एवं वायु को द्यौ एवं पृथ्वी का सम्मीलन करनेवाली संहिता कहा गया है
[ऐ.आ.३.१.१] ;
[ऋ,प्रा.१.२] । ऋग्वेद के आरण्यकों में निम्नलिखित आचार्यो का पैतृक नाम मांडूकेय दिया गया हैः
मांडूकेय II. n. एक आचार्य, जो मंडूक नामक महर्षि का पुत्र था । ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में इसका निर्देश प्राप्त है
[आश्व.गृ.३.४.४] । ऋक्प्रातिशाख्य के अनुसार, स्वरों के बारे में इसने अनेक महत्त्वपूर्ण मत प्रतिपादन किये थे
[ऋ. प्रा.२००] । विष्णु, ब्रह्मांड एवं भागवत में, इसे व्यास की ऋक्शिष्य परंपरा में से इंद्रप्रमति ऋषि का शिष्य कहा गया है । इसके पुत्र का नाम सत्यश्रवस था, जो इसका शिष्य भी था ।