मधुच्छन्दस (वैश्वामित्र) n. एक ऋषि, जो ऋग्वेद के प्रथम मंदल में से पहले दस सूक्तों का रचयिता माना जाता है
[कौ.ब्रा.२८.२] । ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार, यह विश्वामित्र का इक्याबनवॉं पुत्र था
[ऐ.ब्रा.७.१८] । शतपथ ब्राह्मण में सुविख्यात ‘प्रउग’ (प्रातःकालिन स्तुति-स्तोत्र) सूक्त का कर्ता इसे कहा गया है
[श.ब्रा.१३.५.१.८] । यह सूक्त प्रायः प्रातःकाल के समय गाया जात है । इसके द्वारा रचित यह सूक्त गायत्री छंद में है
[ऐ.आ.१.१.३] । विश्वामित्र के कुल सौ पुत्र थे । उनमें से शुनःशेप नामक पुत्र का ज्येष्ठ भ्रातृत्व विश्वामित्र के पहले पचास पुत्रों ने मान्य न किया । किंतु अगले पचास पुत्रों ने उसे मान्यता दी, जिसमें मधुच्छंदस् प्रमुख था । इस कारण विश्वामित्र इस पर अत्यंत प्रसन्न हुआ, एवं उसने इसे शुभाशीर्वाद दिये । वैवस्वत मनु का पुत्र शर्यात राजा का यह पुरोहित था (शर्यात देखिये) । यह विश्वामित्र गोत्र का गोत्रकार एवं प्रवर तथा कुशिक गोत्र का मंत्रकार था
[म.अनु.४.४९-५०] । महाभारत में एक वानप्रस्थी ऋषि के नाते से इसका निर्देश प्राप्त है ।
मधुच्छन्दस (वैश्वामित्र) II. n. प्रमतिपुत्र सुमतिउ राजा का पुरोहित, जो योगमार्ग से मुक्त हुआ था
[पद्म. सृ,१५] ।