भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. कलियुग का प्रारंभ
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. पार्गिटर के अनुसार कलियुगीन राजाओं की पुराणों में प्राप्त बहुतसारी जानकारी सर्वप्रथम ‘ भविष्य पुराण ’ में ग्रथित की गयी थी, जिसकी रचना दूसरी शताब्दी के पश्चात् मगध देश में पाली अथवा अर्धमागधी भाषा में, एवं खरोष्ट्री लिपि में दी गयी थी । भविष्य पुराण के इस सर्वप्रथम संस्करण की रचना आंध्र राजा शातकर्णि के राज्यकाल में (द्वितीय शताब्दी का अंत) की गयी थी । भविष्यपुराण के इस आद्य संस्करण में तत्कालीन सूत एवं मगध लोगों में प्रचलित राजवंशों के सारे इतिहास की जानकारी ग्रथित की गयी थी । कालोपरांत भविष्य पुराण के इसी संस्करण में उत्तरकालीन राजवंशों की जानकारी ग्रथित की जाने लगी, एवं इस प्रकार इस एक ही ग्रंथ के अनेकानेक संस्करण उत्तरकाल में उपलब्ध हुए । भविष्य पुराण के इन अनेकानेक संस्करणों को आधारभूत मान कर विभिन्न पुराणों में प्राप्त भविष्यवंशों की जानकारी ग्रथित की गयी है । इस प्रकार मत्स्य पुराण में ई. स. ३ री शताब्दी के मध्य में उपलब्ध भविष्यपुराण के संस्करण का आधार लिया गया है, एवं उसमें आंध्र राजवंशों के अधः पतन के समय तक के राजाओं की जानकारी दी गयी है । इसी प्रकार वायु एवं ब्रह्मांड में ३ री शताब्दी के मध्य में उपलब्ध भविष्य पुराण के संस्करण का आधारग्रंथ के नाते उपयोग किया हुआ प्रतीत होता है । इसी कारण इन दोनों ग्रंथों में चंद्रगुप्त (प्रथम) के अंत तक (इ. स. ३३०) के राजवंशों का निर्देश पाया जाता है । इस प्रकार इन ग्रंथों में प्रयाग, साकेत, मगध इन देशों पर गुप्त राजाओं का आधिपत्य होने का निर्देश प्राप्त है, एवं इन देशों के परवर्ती प्रदेश पर नाग, मणिधान्य लोगों का राज्य होने का निर्देश स्पष्टरुप से प्राप्त है । समुद्रगुप्त के भारतव्यापी साम्राज्य का निर्देश वहाँ कहीं भी प्राप्त नहीं है, जिससे इन पुराणों की रचना का काल निश्चित हो जाता है । विष्णु एवं भागवत पुराण में चतुर्थ शताब्दी के अंत में उपलब्ध भविष्य पुराण का उपयोग किया गया है, एवं उसका रचनाकाल नौवीं शताब्दी माना जाता है । गरुडपुराण में भी इसी भविष्य पुराण का उपयोग किया गया है । किन्तु इस पुराण का रचनाकाल अनिश्चित है ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. भविष्य वंश में निर्दिष्ट राजवंशों में से आंध्र, मगध, प्रद्योत, शिशुनाग आदि वंशों की ऐतिहासिकता प्रमाणित हो चुकी है । इस कारण इन वंशों की पौराणिक साहित्य में प्राप्त जानकारी इतिहासाध्यायन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है । किन्तु अन्य कई वंश ऐसे भी हैं, जिनकी ऐतिहासिकता अनिश्चित एवं विवादग्रस्त्र है ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. भविष्यपुराण के उपरिर्निर्दिष्ट संस्करणों में से कोई भी संस्करण आज उपलब्ध नहीं है । इस ग्रन्थ के आज उपलब्ध संस्करण में बहुत सारी प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री लुप्त हो चुकी है, एवं जो भी सामग्री आज उपलब्ध है, उसमें मध्ययुगीन एवं अर्वाचीन कालीन अनेकानेक राजाओं की जानकारी भविष्यकथन के रुप में इतनी भद्दी एवं अनैतिहासिक पद्धति से दी गयी है कि, इतिहास के नाते उसका महत्त्व नहीं के बराबर है । उपलब्ध भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में निर्दिष्ट किये गये मध्ययुगीन एवं अर्वाचीन प्रमुख राजाओं कि एवं अन्य व्यक्तियों की नामावलि निम्नप्रकार है - अकबर (४.२२); आदम (१.४); इव्र (२.५); खुर्दिक (४.२२); गंगासिंह (३.४ - ५, ४.१); गजमुक्ता (३.६); गववर्मन् (४.४); गोविंदशर्मन् (४.७); गोरख (३.२४, ४.१२); घोरवर्मन् (४.४); चंडिका (३.१५); चतुर्वेदिन् (२.६, ४.२१); चन्द्रकान्ति (३.३२); चंद्रगुप्त चपहानि (४.२); चंद्रदेय (४.३); चंद्रभट्ट (३.३२); चंद्रराय (४.२); चरउ (२.४); चामुंड (३.९); चित्रगुप्त (४.१८); चित्रिणी (४.७); चूडामणि (२.१२); जयचंद्र (३.६, ४.३); जयदेव (४.९.३४ - ६६); जयंत (३.२३); जयपाल (४.३); जयवान् (३.४१); जयशर्मन् (३.५); जयसिंह (४.२); जूज (१.२५); तालन (३.७); दुर्मुख (८ - ९); नादर (४.२२); न्यूह (१.५); पद्मिनी (३.३०); पृथ्वीराज (३.५ - ६); प्रमर (१.६, ४.१); बाबर (४.२२); बुद्धसिंह (२.७); मध्वाचार्य (४.८,१९); महामत्स्य (४.२२); महामद (३.३); लार्डल (४.२०); विकटावती (४.२२); शंकराचार्य (४.२२) । उपर्युक्त व्यक्तियो में से जूज, महामद एवं विकटावती क्रमशः जीझस ख्राइस्ट, महंमद पैगंबर, महारानी व्हिक्टोरिया के संस्कृत रुप हैं ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. पौराणिक साहित्य में प्राप्त भविष्यवंशों की जानकारी अकारादि क्रम से नीचे दी गयी है : -
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. इस वंश के राजाओं की संख्या मत्स्य, वायु, एवं विष्णु में क्रमशः ३०,२२ (१८), एवं २४ दी गयी है । ब्रह्मांड, भागवत एवं विष्णु के अनुसार, इन राजाओं ने ४५६ वर्षौ तक, एवं मत्स्य के अनुसार ४६० (३६०) वर्षौ तक राज्य किया । इन राजाओं का काल ई. स. पू. २२० - ई. स. २२५ माना गया है । इस वंश में उत्पन्न राजाओं की नामावलि, एवं उनका संभाव्य राज्यकाल निम्नप्रकार है : - १. सिमुक (सिंधुक, शिप्रक) - २३ वर्ष; २. कृष्ण (भात) - १० वर्ष; ३. श्रीशातकर्णि (श्रीमल्लकर्णि) - १०; ४. पूर्णोत्संग (पौर्णमास) - १८ वर्ष; ५. स्कंधस्तंभ - १८ वर्ष; ६. शातकर्णि (शांतकर्णि, सातकर्णि) - ५६ वर्ष; ७. लंबोदर - १८ वर्ष; ८. आपीतक (आपीलक, दिविलक) - १२ वर्ष; ९. मेघस्वाति - १८ वर्ष; १०. स्वाति (पटुमत्, अटमान्) - १८ वर्ष; ११. स्कंदस्वाति - ७ वर्ष; १२. मृगेंद्रस्वातिकर्ण - ३ वर्ष; १३. कुंतलस्वातिकर्ण - ८ वर्ष; १४. स्वातिवर्ण - १ वर्ष; १५. पुलोमावी - ३६ वर्ष; १६. अरिष्टकर्ण (अनिष्टकर्ण) - २५ वर्ष; १७. हाल - ५ वर्ष; १८. मंतलक (पत्तलक, मंदुलक) - ७ वर्ष; १९. पुरिकषेण (प्रविल्लसेन, पुरीषभीरु) - २१ वर्ष; २०. सुंदरशातकर्णि (सुनंदन) - १ वर्ष; २१. चकोरशातकर्णि - ६ माह; २२. शिवस्वाति - २८ वर्ष; २३. गौतमीपुत्र शातकर्णि (गोतमीपुत्र); २४. पुलोमत् - २८ वर्ष; २५. शातकर्णि (शिवशातकर्णि) - २९ वर्ष; २६. शिवश्री - ७ वर्ष; २७. शिवस्कंध - ३ वर्ष; २८. यज्ञश्री शातकर्णि - २९ वर्ष; ३०. विजय - ६ वर्ष; ३१. चंडश्री - १० वर्ष; ३२. पुलोमत् (द्वितीय) - ७ वर्ष । उपर्युक्त राजाओं में से पुरुषभीरु राजा से उत्तरकालीन राजाओं की ऐतिहासिकता अन्य ऐतिहासिक साधनों के द्वारा सिद्ध हो चुकी है । मेघस्वाति राजा के द्वारा २७ ई. पू. में काण्वायन राजाओं का विच्छेद किये जाने का निर्देश प्राप्त है ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. इस वंश का संस्थापक वसुदेव था, जो शुंगवंश का अंतिम राजा देवभूति (देवभूमि, क्षेमभूमि) का अमात्य था । उसने देवभूति को पदच्युत किया, एवं वह स्वयं काण्वायन वंश का पहला राजा बन गया । इस वंश के कुल चार राजा थे, जिन्होंने ४५ वर्षौं तक राज्य किया । इस वंश का पहला राजा वसुदेव एवं अंतिम राजा सुशर्मन् था । दक्षिण प्रदेश में उदित आंध्र लोगों ने सुशर्मन् को राज्यभ्रष्ट किया, एवं इस प्रकार काण्वायन वंश का राज्य समाप्त हुआ । इस वंश के ‘ द्विज ’ उपाधि से प्रतीत होता है कि, काण्वायन राजा ब्राह्मण थे । इनका राज्यकाल ई. स. ७२ - २७ माना जाता है । इस वंश के निम्नलिखित राजा प्रमुख थे : - १. वसुदेव - ९ वर्ष; २. भूमिमित्र - १४ वर्ष; ३. नारायण - १२ वर्ष; ४. सुशर्मन् - १० वर्ष ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. मगधदेश में राज्य करनेवाले इस वंश में कुल नौ राजा हुए, जिन्होंने सौ वर्षौं तक राज्य किया । इनका राज्यकाल ४२२ ई. पू. से ३२२ ई. पू. तक माना जाता है । इनका सर्वप्रथम राजा महापद्म नंद था, जो महानंदिन् राजा को एक शूद्र स्त्री से उत्पन्न हुआ था । उसने ८८ वर्षौ तक राज्य किया, एवं पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का उच्छेद किया । उसके पश्चात् उसके आठ पुत्रों में से सुकल्प राजा राजगद्दी पर आरुढ हुआ, एवं उसके पश्चात् अन्य सात नंदवंशीय राजा हुए । अंत में कौटिल्य नामक ब्राह्मण ने इस वंश को जडमूल से उखाड दिया, एवं मगध का राज्य मौर्यवंशीय राजाओं के हाथ चला गया । भविष्यपुराण में नंदवंशीय राजाओं की नामावलि निम्नप्रकार दी गयी हैं : - १. नंदसुत; २. प्रनंद; ३. परानंद; ४ समानंद; ५. प्रियानंद; ६ देवानंद; ७. यज्ञदत्त; ८. मौर्यानंद; ९. महानंद ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. मगधदेश के इस राजवंश की स्थापना शुनक (पुलिक) के द्वारा की गयी थी, जिसने अवंति के राजाओं में से एक राजा का वध कर, अपने पुत्र प्रद्योत को राजगद्दी पर बिठाया । इस वंश में कुल पाँच राजा उत्पन्न हुए थे, जिन्होंने १३८ वर्षौ तक राज्य किया था । इनका राज्यकाल ई. पू. ६८९ - ५५२ माना जाता था । ये राजा मगध के बार्हद्रथ वंश के राजाओं से काफी उत्तरकालीन माने जाते हैं । इस वंश के निम्नलिखित राजा प्रमुख माने जाते हैं : - १. प्रद्योत - २३ वर्ष; २. पालक - २४ वर्ष; ३. विशाखयूप - ५० वर्ष; ४. अजक - २१ वर्ष; ५. नंदिवर्धन - २० वर्ष ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. भारतीय युद्ध के समय इस वंश का जरासंधपुत्र सहदेव राज्य करता था । इस युद्ध में सहदेव के मारे जाने के बाद, उसका पुत्र सोमाधि गिरिव्रज का राजा बन गया । इस प्रकार मगधदेश का भविष्यवंश सोमाधि राजा से प्रारंभ होता है, एवं रिपुंजय राजा से समाप्त होता है । इस वंश में से सेनाजित राजा के राज्यकाल में मत्स्य, वायु एवं ब्रह्मांड पुराणों की रचना की गयी थी । बृहद्रथ से ले कर रिपुंजय तक इस वंश में कुल बत्तीस राजा हुए, एवं उन्होंने एक हजार वर्षौ तक राज्य किया । इनमें से मत्स्य पुराण की रचना के पश्चात् उत्पन्न हुए श्रुतंजय राजा के पश्चात् सोलह राजा हुए, एवं उन्होंने ७२३ वर्षौ तक राज्य किया । इन राजाओं की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है, यहाँ इस वंश के केवल प्रमुख राजाओं की जानकारी दी गयी है
[ब्रह्मांड. ३.७४] ;
[वायु. ९९.२९६ - ३०९] ;
[मत्स्य. २७३] ;
[विष्णु. ४.२३] ;
[भा. ९.२२] । इस वंश में उत्पन्न हुए प्रमुख राजाओं के नाम एवं उनमें से हर एक का राज्यकाल निम्नप्रकार था : - १. सोमाधि (सोमापि, मार्जारि) - ५८ वर्ष; २. श्रुतश्रवस् (श्रुतवत्) - ६४ वर्ष; ३. अयुतायु (अप्रतिवर्मन्; अयुतायुत) - २६ वर्ष; ४. निरमित्र - ४० वर्ष; ५. सुक्षत्र - ५६ वर्ष; ६. बृहत्कर्मन् - २३ वर्ष; ७. सेनाजित् (सेनजित्, कर्मजित्) - २३ वर्ष; ८. श्रुतंजय - ४० वर्ष; ९. विभु (महाबाहु) - २८ वर्ष; १०. शुचि - ५८ वर्ष; ११. क्षेम - २८ वर्ष; १२. सुव्रत (अनुव्रत) - ६४ वर्ष; १३. सुनेत्र (धर्मनेत्र) - ३५ वर्ष; १४. निवृति (नृपति) - ५८ वर्ष; १५. त्रिनेत्र (सुश्रम) - २८ वर्ष (३८ वर्ष); १६. दृढसेन (द्युमत्सेन) - ४८ वर्ष; १७. महीनेत्र (सुमति) - ३३ वर्ष; १८. सुचल - ३२ वर्ष; १९. सुनेत्र (सुनीत) - ४० वर्ष; २०. सत्यजित् - ८३ वर्ष; २१. विश्वजित (वीरजित्) - २५ वर्ष; २२. रिपुंजय - ५० वर्ष ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. मगध देश के इस वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा हुई । इस वंश में कुल दस राजा थे, जिन्होंने कुल १३७ वर्षौ तक राज्य किया । इस वंश का शासनकाल ई. स. पू. ३२१ - १८४ माना जाता है । इस वंश में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे : - १. चंद्रगुप्त २४ वर्ष; २. बिंदुसार (भद्रसार) - २५ वर्ष; ३. अशोकवर्धन (अशोक) - २६ वर्ष; ४. कुनाल (सुयशस्) - ८ वर्ष; ५. बंधुपालित (दशरथ) - ८ वर्ष; ६. संप्रति - ९ वर्ष; ७. शालिशुक - १३ वर्ष; ८. देवधर्मन् - ७ वर्ष; ९. शतवर्मन् - ८ वर्ष; १०. बृहद्रथ - ७ वर्ष ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. इस वंश का संस्थापक काशी देश का राजा शिशुनाग था । उसने मगध देश के प्रद्योत वंशीय अन्तिम राजा नन्दिवर्धन को पदच्युत कर, अपना स्वतंत्र राजवंश मगध देश में प्रस्थापित किया । इस वंश के कुल दस राजा थे, जिन्होंने ३६० वर्षौ तक राज्य किया । इस वंश का सर्वाधिक सुविख्यात राजा अजातशत्रु था, जिसके राज्यकाल में बौद्ध धर्म का उदय हुआ । इस वंश के निम्नलिखित राजा प्रमुख माने जाते हैं : - १. शिशुनाग - ४० वर्ष; २. काकवर्ण - ३६ वर्ष; ३. क्षेमधर्मन् - २० वर्ष; ४. क्षत्रौजस् (अजातशत्रु प्रथम) - ४० वर्ष; ५. बिंबिसार श्रेणिक - २८ वर्ष; ६. अजातशत्रु द्वितीय - २५ वर्ष; ७. दर्शक - २५ वर्ष; ८. उदधिन् - ३३ वर्ष; ९. नन्दिवर्धन - ४० वर्ष; १०. महानन्दिन् - ४३ वर्ष ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. इस वंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने की थी, जो मगध देश के अंतिम मौर्यवंशीय राजा बृहद्रथ का सेनापति था । उसने बृहद्रथ राजा का वध कर शुंगवंश की स्थापना की । इस वंश में कुल दस राजा थे, जिन्होंने कुल एक सौ बारह वर्ष तक राज्य किया । पुष्यमित्र स्वयं शूद्रवर्णीय था । शुंगवंश का राज्यकाल ई. स. पू. १८४ - ई. स. पू. ७२ तक माना जाता है । इस वंश में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे : - १. पुष्यमित्र - ३६ वर्ष; २. अग्निमित्र - ८ वर्ष; ३. वसुज्येष्ठ - ७ वर्ष; ४. वसुमित्र - १० वर्ष; ५. अंध्रक - २ वर्ष; ६. पुलिंदक - ३ वर्ष; ७. घोष - ३ वर्ष; ८. वज्रमित्र - ९ वर्ष; ९. भागवत - ३२ वर्ष; १०. देवभूमि - १० वर्ष ।
भविष्य वंश (राजवंश) (भविष्य़.) n. उपर्युक्त प्रमुख वंशों के अतिरिक्त निम्नलिखित ‘ भविष्य वंशों ’ का निर्देश भी पौराणिक साहित्य में पाया जाता है : - १. अवन्ती; २. आभीर; ३. ऐक्ष्वाक, जिसका अंतिम राजा सुमित्र माना जाता है; ४. कलिंग; ५; काशी; ६. कुरु; ७. कैलकिल; ८. गर्दभिल; ९. तुषार; १०. नंद; ११. पांचाल; १२. पौरव, जिनका अंतिम राजा क्षेमक माना जाता है; १३. मुरुंड; १४. मैथिल; १५. मौन; १६. यवन; १७. शक; १८. शूरसेन; १९. हूण (ब्रह्मांड. ३.७४; वायु. ९९.२०७ - ४६४; विष्णु. ४.२४; भा. १२.१; मत्स्य. २७३ । इन में से बहुत सारे वंश ऐतिहासिक साबित हो चुके हैं । गर्दभिल, मौन, मुरुंड ऐसे थोडे ही वंश हैं कि, जिनकी ऐतिहासिकता अब तक सिद्ध नहीं हो पायी है ।