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विप्रचित्ति n. एक दानव राजा, जो कश्यप एवं दनु के सौ पुत्रों में से प्रमुख पुत्र था [भा. ६.६.३१] । महाभारत में दनु के पुत्रों की संख्या चौंतीसस दी गयी है, जिनमें इसे प्रमुख कहा गया है [म. आ. ५९.२१] । इसके भाइयों में ध्वज नामक असुर प्रमुख था [वायु. ६७.६०] ।
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विप्रचित्ति n. वृत्रासुर एवं हिरण्यकशिपु के द्वारा इंद्र से किये गये युद्ध में, यह असुर पक्ष में शामिल था [म. स. ५१.७] ;[भा. ६.७०] । बलि वैरोचन एवं इंद्र के युद्ध में भी यह सहभागी थी । वामन के द्वारा किये गये ‘बलिबंधन’ के समय, यह वामन से युद्ध करने के लिए उद्यत हुआ था [म. स. परि. २१.३३७] । देवासुरों के द्वारा किये गये ‘अमृतमंथन’ के समय भी, यह उपस्थित था [मत्स्य. २४५.३१] ।
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विप्रचित्ति n. अपनी सिंहिका नामक पत्नी से इसे एक सौ एक पुत्र उत्पन्न हुए थे, जो ‘सैंहिकेय’ सामूहिक नाम से सुविख्यात थे । एक राहु एवं सौ केतु मिल कर, ये १०१ सैंहिकेय राक्षस बने थे [भा. ६.६.३७] । भागवत के अतिरिक्त, ब्रह्म, मत्स्य आदि बाकी सारे पुराणों में इसके पुत्रों की संख्या तेरह दी गयी है । हरिवंश, विष्णु एवं ब्रह्मांड में वह बारह बतायी गयी है । विप्रचित्ति के पुत्रों की हरिवंश में प्राप्त नामावलि, अन्य पुराणों में प्राप्त पाठभेदों के साथ नीचे दी गयी हैः-- १. अंजिक (अजन, अंजक, सुपुंजिक); २. इल्वल; ३. कालनाभ; ४. खस्त्रुम (शलभ, श्र्वसृप); ५. नभ (नल, भौम); ६. नमुचि; ७. नरक (कनक) ८. राहु (पोतरण, सरमाण, स्वर्भानु); ९. वज्रनाभ (कालवीर्य, चक्रयोधिन्, बल); १०. वातापि; ११. व्यंश (वंश्य, व्यंस, सव्यसिव्य); १२. शुक्र (विख्यात, केतु, शंभु) [ह. वं. १.३] ;[मत्स्य ६] ;[विष्णु. १.२१] ;[ब्रह्म. ३] ;[ब्रह्मांड. ६.१८.२२] ।
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विप्र—चित्ति mfn. mfn. (
वि॑प्र-) sagacious, [TBr.]
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