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वैशंपायन n. एक महर्षि, जो महर्षि व्यास के चार वेदप्रवर्तक शिष्यों में से एक, एवं कृष्ण यजुर्वेदीय ‘तैत्तिरीय संहिता’ का आद्य जनक था । ‘विशंप’ का वंशज होने के कारण इसे ‘वैशंपायन’ नाम प्राप्त हुआ होगा।
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वैशंपायन n. इस साहित्य में से केवल तैत्तिरीय आरण्यक एवं गृह्यसूत्रों में वैशंपायन का निर्देश मिलता है । ऋग्वेद के कई मंत्रों का नया अर्थ लगाने का युगप्रवर्तककार्य वैशंपायन ने किया। ऋग्वेद में ‘सप्त दिशो नाना सूर्याः’ नामक एक मंत्र है [ऋ. ९.११४.३] , जिसका अर्थ, ‘पृथ्वी के सात दिशाओं में सात सूर्य है, एवं श्रौतकर्म में सात दिशाओं में अधिष्ठित हुए सात ऋत्विज (होता) ही सूर्यपूर है,’ ऐसा अर्थ वैंशंपायन के काल तक किया जाता था । किंतु वैशंपायन ने ऋग्वेद में अन्यत्र प्राप्त ‘यज्ञाव इद्र सहस्त्रं सूर्या अनु’ [ऋ. ८.७०.५] , के आधार से सिद्ध किया कि, ऋग्वेद में निर्दिष्ट सूर्यों की संख्या सात नही, बल्कि एक सहस्त्र है [तै. आ. १७] ।
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वैशंपायन n. एक वैदिक गुरु के नाते, वैशंपयन का निर्देश पाणिनि के ‘अष्टाध्यायी’ में प्राप्त है [पा. सृ. ४.३.१०४] । पतंजलि के ‘व्याकरण महाभाष्य’ में इसे कठ एवं कलापिन् नामक आचार्यों का गुरु कहा गया है ।
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वैशंपायन n. वैशंपायन ऋषि ‘निगद’ (कृष्णयजुर्वेद) का प्रवर्तक, एवं वेदव्यास के चार प्रमुख वेदप्रवर्तक शिष्यों में से एक था । वेदव्यास के पैल, वैशंपायन, जैमिनि एवं सुमंतु नामक चार प्रमुख शिष्य थे, जिन्हें उसने क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान किया था [बृ. उ. २.६.३] ;[ब्रह्मांड. १.१.११] । वैशंपायन को संपूर्ण यजुर्वेद का ज्ञान प्राप्त होने का गौरवपूर्ण उल्लेख महाभारत एवं पुराणों में भी प्राप्त है [म. आ. १.६१-६३*, ५७.७४] ;[शां. ३२७. १६-१८, ३२९,३३७.१०-१२] ;[वायु. ६०.१२-१५] ;[ब्रह्मांड. २.३४.१२-१५] ;[विष्णु. ३.४.७-९] ;[लिंग. १. ३९. ५७-६०] ;[कूर्म. १.५२.११-१३] ।
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