कुचैल n. (हीन वस्त्रोंवाला) कृष्ण एक भक्त तथा सांदीपनि आश्रम में बना हुआ उसका पुराना ब्राह्मण मित्र । यह बडा ही विरक्त, जितेन्द्रिय एवं ज्ञानी था । सरलता से जितना मिलता था, उसी पर निर्वाह करने की वृत्ति के कारण, यह अत्यंत दरिद्री था । दरिद्रता से त्रस्त हो कर इसकी पत्नी ने इसे कृष्ण के पास जाने के लिये कहा । क्यों कि, कृष्ण इसका पुराना मित्र तथा बडा ही उदार था । पत्नी के बार बार आग्रह करने पर, ‘अयं हि परमो लाभ उत्तमश्लोकदर्शनम’, इस विचार से यह कृष्ण के यहॉं गया । जाते समय कुछ साथ ले जाना चाहिये, इस विचार पत्नीद्वारा उधार मॉंग कर लाया गया मुठ्ठियॉं चिउडा, एक जीर्ण कपडे में बांधकर साथ लिया । द्वारका आ कर कृष्ण से मुलाकात होने पर, अपने पुराने मित्रत्व के नाते, कृष्ण ने इसका पर्याप्त सत्कार किया । गुरुकुल की अनेक घटनाओं का स्मरण किया । हाथ में हाथ डाल कर बहुत गप्पें लडाई । कृष्ण ने स्वयं इससे पूछा, ‘तुम मेरे लिये क्या लाये हो’ । इसके द्वारा दिये गये चिउडे में से, एक मुष्टि चिउडा बडे आनंद से कृष्ण ने भक्षण किया । एक रात्रि बडे आनंद से वहॉं बिताई । दूसरे दिन यह वहॉ से निकला । इसकी अयाचित वृत्ति के कारण, न तो कृष्ण ने इसे कुछ दिया, न कि इसने कृष्ण से कुछ मॉंगा । कृष्ण ने अपने को क्यों धन नहीं दिया इस विषय में, धनप्राप्ति के बाद शायद मैं ईश्वर को भूल जाऊंगा, इस तरह का उलटा तर्क इसने लडाया । परंतु घर आने के बाद इसने देखा, इसे उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त हो गया है
[भा.१०.८०.७] । भागवत में कहीं भी इसे सुदामन् अथवा श्रीदामन् नहीं कहा गया है । किन्तु जनसाधरण में वैसी ही प्रसिद्धि है । सत्यविनायक की कथा में, यही कथा सुदामन् नाम पर आई है ।