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उपकासेल

   
Script: Devanagari

उपकासेल     

उपकासेल (कामलायन) n.  कमलपुत्र उपकोसल । सत्यकाम जाबाल के घर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अध्ययन करने के लिये रहा । बारह वर्षो के बाद सत्यकाम ने अन्य शिष्यों का समावर्तन कर स्वगृह जाने की अनुमति दी परंतु उपकोसल का समावर्तन नहीं किया । तब सत्यकाम की स्त्रीने उससे कहा कि इस ब्रह्मचारी ने अग्नि, की सेवा उत्तम प्रकार से की है। अग्नि हमें दोष न दे इसलिये आप इसे ब्रह्मज्ञान बताइये । परंतु इस ओर ध्यान न दे, सत्यकाम यात्रा करने चला गया । तब मानसिक दुःख कारण, उपकोसल ने अन्न वर्ज्य किया । इस ब्रह्मचारी का तप और उसकी सेवा को ध्यान में रख कर तीन अग्नि, इसे ज्ञान देने के लिये प्रगट हुए । तीनों अग्नियों ने इसे बताया कि प्राण, सुख तथा आकाश ये प्रत्येक ब्रह्म है । उपकोसल ने कहा ‘प्राण ब्रह्म कैसे है यह मुझे समझ गया; परंतु सुख और आकाश के संबंध मे मुझे समझ में नहीं आया । इस पर अग्नि ने योग्य उत्तर दें कर उसका समाधान कर अपना स्वरुप भी उसें समझा दिया । उन्होंने अंत में कहा ‘उपकोसल ! यह हमारी विद्या तथा आत्मविद्या हम ने तुम्हें बताई । ब्रह्मवेत्ता का अगला मार्ग तुम्हारे आचार्य बतायेंगे’। कुछ दिनों के बाद आचार्य आये और शिष्य का मुहावलोकन कर कहा

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