चित्रकेतु n. स्वायंभुव मन्वन्तर में वसिष्ठ ऋषि तथा ऊर्जा का पुत्र
[भा. ४.१.४१] ।
चित्रकेतु II. n. शूरसेन देश का राजा । इसकी एक करोड स्त्रिया थीं पर वे सारी अनपत्य थीं । एक बार अंगिरस ऋषि इसके पास आये । तब इसकी प्रार्थनानुसार उन्होंने यज्ञ किया । आदित्य को हविर्भाग देने के बाद, इसकी पटरानी कृतद्युति ने हुतशेष भक्षण किया । इससे उसे पुत्र हुआ । परंतु यह उसकी सौतों को सहन न हो कर, उन्होंने बालक को विष दे दिया । इससे सब शोकाकुल हो गये । इतने में अंगिरस् ऋषि तथा नारद वहॉं प्रकट हुए । ‘अनित्य के लिये शोक करना उचित नही है,’ ऐसा उपदेश उन्होंने इसे किया । अपने दुख को सम्हाल कर, इसने पुत्र की उत्तरक्रिया की । पश्चात नारद का उपदेश ले कर, यह तपस्या करने यमुना के किनारे गया । दूसरे जन्म में यह विद्याधरों का राजा वना । एक बार यह विमान में घूम रहा था । तब इसने देखा कि, शंकर पार्वती को गोद में लेकर, सभा में बैठे हैं । यह देख कर इसने हँस दिया । तब पार्वती ने इसे, ‘तुम राक्षस बनोंगे’ ऐसा शाप दिया । यह परम विष्णुभक्त था । इस कारण, शाप देने की शक्ति होते हुए भी, इसने पार्वती को उलटा शाप नही दिया । इसने उससे क्षमा मॉंगी, तथा यह वापस गया । पार्वती के शाप से यह वृत्रासुर बना
[भा.६.१४-१७] ।
चित्रकेतु III. n. दशरथपुत्र लक्ष्मण के चन्द्रकेतु नामक पुत्र का नामांतर । यह चंद्रकांतनगर में रहता था
[भा.९.११.१२] ।
चित्रकेतु IV. n. (सो. नील.) पांचालदेश का राजा । यह द्रुपद का पुत्र था । द्रोणाचार्य ने इसके भाई वीरकेतु का वध किया । इसलिये क्रोधित हो कर इसने द्रोणाचार्य पर आक्रमण किया । परंतु द्रोणाचार्य ने इसका भी वध किया
[म.द्रो.१२२] । इसे सुकेतु नामक पुत्र
[म.आ.१८६] ;
[क. ३८.२१] ।
चित्रकेतु V. n. (सो. वृष्णि.) भागवत मतानुसार देवभाग एवं कंसा का ज्येष्ठ पुत्र ।
चित्रकेतु VI. n. (सो. वृष्णि.) श्रीकृष्ण तथा जांबवती का पुत्र ।
चित्रकेतु VII. n. गरुड का पुत्र
[म.उ.९९.१२] ।