-
श्री गणाधिपति पञ्चरत्न स्तोत्रम्
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे.
A Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas.
Type: PAGE | Rank: 2.810492 | Lang: NA
-
श्री गणाधिपति पञ्चरत्न स्तोत्रम् - ॐ सरागिलोकदुर्लभं विरागिल...
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे. स्तोत्रे स्तुतीपर असल्याने, त्यांना कोणतेही वैदिक नियम नाहीत. स्तोत्रांचे पठण केल्याने इच्छित फल प्राप्त होते. Stotras are invariably uttered aloud and consist of chanting verses conveying the glory and attributes of God.
Type: PAGE | Rank: 2.810492 | Lang: NA
-
नटेश पञ्चरत्न स्तोत्र - ॥ध्यानम् ॥ वामे भूधरजा पु...
शिव हि महान शक्ति असून त्रिमूर्तींपैकी एक आहेत. विश्वाची निर्मीती ब्रह्मदेवाने केली असून नाश करण्याचे कार्य शिवाचे आहे. शिवाचे वास्तव्य कैलास पर्वतावर आहे. Shiva is one of the gods of the Trinity. He is said to be the 'god of destruction'. Shiva is married to the Goddess Parvati (Uma). Parvati represents Prakriti. Lord Shiva sits in a meditative pose on Mount Kailash against, Himalayas.
Type: PAGE | Rank: 1.377186 | Lang: NA
-
पञ्चरत्न
Meanings: 5; in Dictionaries: 2
Type: WORD | Rank: 1.377186 | Lang: NA
-
गुरुवरप्रार्थनापञ्चरत्नस्तोत्रम् । - श्रीगणेशाय नमः ॥ यं विज्...
देवी देवतांची स्तुती करताना म्हणावयाच्या रचना म्हणजेच स्तोत्रे.
A Stotra is a hymn of praise, that praise aspects of Devi and Devtas.
Type: PAGE | Rank: 1.207177 | Lang: NA
-
रोग हनन व्रत - सर्वज्वरहरव्रत
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
Type: PAGE | Rank: 0.02338317 | Lang: NA
-
मत्स्यपुराणम् - अध्यायः ५६
मत्स्य पुराणात सात कल्पांचे वर्णन असून हे पुराण नृसिंह वर्णनापासून सुरू होते.
Type: PAGE | Rank: 0.02338317 | Lang: NA
-
रत्नम्
Meanings: 52; in Dictionaries: 2
Type: WORD | Rank: 0.01636822 | Lang: NA
-
कामाख्या सिद्धी - कलश स्थापन
कामरूप कामाख्या में जो देवी का सिद्ध पीठ है वह इसी सृष्टीकर्ती त्रिपुरसुंदरी का है ।
Type: PAGE | Rank: 0.0140299 | Lang: NA
-
कलश स्थापन
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
Type: PAGE | Rank: 0.01322752 | Lang: NA
-
प्रथम पाद - हरिपञ्चक-व्रतकी विधि
` नारदपुराण’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द- शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।
Type: PAGE | Rank: 0.01169159 | Lang: NA
-
सुप्रभेदागमः - सकलप्रतिष्ठाविधि पटलः
प्रस्तुत ग्रंथ शके १८३६ यावर्षी कै. गुरूभक्त व्यंकटरमणा मच्छावार यांनी प्रसिद्ध केला होता.
Type: PAGE | Rank: 0.009353269 | Lang: NA
-
रसरत्नसमुच्चय - अध्याय ४
श्रीशालिनाथ कृत रसरत्नसमुच्चय रसचिकित्सा का सर्वांगपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें रसों के उत्तम उपयोग तथा पारद-लोह के अनेक संस्कारों का उत्तम वर्णन है अतएव समाज में यह बहुपयोगी सिद्ध हो रहा है ।
Type: PAGE | Rank: 0.009353269 | Lang: NA
-
पूजा विधी - कलश स्थापनम्
जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।
Type: PAGE | Rank: 0.009353269 | Lang: NA
-
अथ क्रियापादः - स्वायंभुलिंगागमम्
सुप्रभेदागमः म्हणजे शिल्पशास्त्र ह्या विषयावरील महत्वपूर्ण ग्रंथ.
Type: PAGE | Rank: 0.008184111 | Lang: NA
-
धर्मशास्त्रानुसार विशेष बातें
व्रत हिंदू संस्कृति एवं धर्मके प्राण है;व्रतोंपर वेद, धर्मशास्त्रों, पुराणों तथा वेदाङ्गोंमें बहुत कहा गया है ।
Type: PAGE | Rank: 0.007014952 | Lang: NA