प्राचीनकालमें भद्रमति नामसे प्रसिद्ध एक श्रेष्ठ ब्राह्मण हो गये हैं । वे बड़े विद्वान् और निःस्पृह थे । उन्होंने एक समय यह उदगार प्रकट किया था कि जो आशाके दास हैं, वे समस्त संसारके दास हैं और जिन्होंने आशाके दास हैं, वे समस्त संसारके दास हैं और जिन्होंने आशाको अपनी दासी बना लिया है, उनके लिये यह सम्पूर्ण जगत दासके तुल्य है ।
एक समय धर्मात्मा भद्रमति अपनी पत्नीके साथ वेंकटाचलपर गये और भगवान् श्रीनिवासके मन्दिरमें जाकर उनके श्रीविग्रहका दर्शन किया । वे मन - ही - मन जिन अन्तर्यामी प्रभुका निरन्तर चिन्तन करते थे, उन्हींके दिव्य अर्चाविग्रहका दर्शन करके आज उनके हदयमें प्रेमका अगाध सिन्धु उमड़ आया । उनके नेत्रोंसे प्रेमाश्रु बहने लगे । चित्त एकाग्र हो गया और वे भक्तिभावसे भगवान् श्रीनिवासकी इस प्रकार स्तुति करने लगे -
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय नमो नमस्तेऽखिलपालकाय ।
नमो नमस्तेऽमरनायकाय नमो नमो दैत्यविमर्दनाय ॥
नमो नमो भक्तजनप्रियाय नमो नमः पापविदारणाय ।
नमो नमो दुर्जननाशकाय नमोऽस्तु तस्मै जगदीश्वराय ॥
नमो नमः कारणवामनाय नारायणायमितविक्रमाय ।
श्रीशार्ङ्गचक्रासिगदाधराय नमोऽस्तु तस्मै पुरुषोत्तमाय ॥
नमः पयोराशिनिवासकाय नमोऽस्तु लक्ष्मीपतयेऽव्ययाय ।
नमोऽस्तु सूर्याद्यमितप्रभाय नमो नमः पुण्यगतागताय ॥
नमो नमोऽकेंन्दुविलोचनाय नमोऽस्तु ते यज्ञफलप्रदाय ।
नमोऽस्तु यज्ञाङ्गविराजिताय नमोऽस्तु ते सज्जनवल्लभाय ॥
नमो नमः कारणकारणाय नमोऽस्तु ते मन्दरधारकाय ।
नमोऽस्तु ते यज्ञवराहनाम्ने नमो हिरण्याक्षविदरकाय ॥
नमोऽस्तु ते वामनरुपभाजे नमोऽस्तु ते क्षत्रकुलान्तकाय ।
नमोऽस्तु ते रावणमर्दनाय नमोऽस्तु ते नन्दसुताग्रजाय ॥
नमस्ते कमलाकान्त नमस्ते सुखदायिने ।
श्रितार्तिनाशिने तुभ्यं भूयो भूयो नमो नमः ॥
' सबके कारणरुप आप भगवानको नमस्कार है, नमस्कार है । सबको पालन करनेवाले आपको नमस्कार है, नमस्कार है । समस्त देवताओंके स्वामी आपको नमस्कार है, नमस्कार है । दैत्योंका संहार करनेवाले आपको नमस्कार है, नमस्कार है । जो भक्तजनोंके प्रियतम, पापोंके नाशक तथा दुष्टोंके संहारक हैं, उन जगदीश्वरको बार - बार नमस्कार है । जिन्होंने किसी विशेष हेतुसे वामनरुप धारण किया, जो नारस्वरुप जलमें निवास करनेके कारण नारायण कहलाते हैं, जिनके विक्रमकी कोई सीमा नहीं है तथा जो शार्ङ्ग, चक्र, खङ्ग और गदा धारण करते हैं, उन भगवान् पुरुषोत्तमको बार - बार नमस्कार है । क्षीरसिन्धुमें निवास करनेवाले भगवानको नमस्कार है । अविनाशी लक्ष्मीपतिको नमस्कार है । जिनके अनन्त तेजकी सूर्य आदिसे भी तुलना नहीं हो सकती, उन भगवानको नमस्कार है तथा जो पुण्यकर्मपरायण पुरुषोंको स्वतः प्राप्त होते हैं, उन भगवानको नमस्कार है तथा जो पुण्यकर्मपरायण पुरुषोंको स्वतः प्राप्त होते है< उन कृपालु श्रीहरिको बार - बार नमस्कार है । सूर्य और चन्द्रमा जिनके नेत्र हैं, जो सम्पूर्ण यज्ञोंका फल देनेवाले हैं, यज्ञाङ्गोंसे जिनकी शोभा होती है तथा जो साधुपुरुषोंके परम प्रिय हैं, उन भगवान् श्रीनिवासको बार - बार नमस्कार है । जो कारणके भी कारण, शब्दादि विषयोंसे रहित, अभीष्ट सुख देनेवाले तथा भक्तोंके हदयमें रमण करनेवाले हैं, उन भक्तवत्सल भगवानको बार - बार नमस्कार है । अदभुत कारणरुप आपको नमस्कार है, नमस्कार है । मन्दराचल पर्वत धारण करनेवाले कच्छापरुपधारी आपको नमस्कार है । यज्ञवाराहरुपमें प्रकट होनेवाले आपको नमस्कार है ।
हिरण्याक्षको विदीर्ण करनेवाले आपको नमस्कार है । वामनरुपधारी आपको नमस्कार है । क्षत्रियकुलका अन्त करनेवाले परशुरामरुपमें आपको नमस्कार है । रावणका मर्दन करनेवाले श्रीरामरुपधारी आपको नमस्कार है तथा नन्दनन्दन श्रीकृष्णके बड़े भाई बलरामरुपमें आपको नमस्कार है । कमलाकान्त ! आपको नमस्कार है । सबको सुख देनेवाले आपको नमस्कार है । भगवन् ! आप शरणागतोंकी पीड़ाका नाश करनेवाले हैं । आपको बारंबार नमस्कार है ।'
ब्राह्मण भद्रमतिके इस प्रकार स्तुति करनेपर भक्तवत्सल भगवान् श्रीनिवास बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने भद्रमतिको अपने दिव्य स्वरुपका साक्षात् दर्शन कराया और स्नेहपूर्वक कहा - ' वत्स ! तुम्हारा कल्याण हो, मैं तुम्हारे इस महास्तोत्रसे बहुत सन्तुष्ट हूँ । तुम इस लोकमें पुत्र पौत्र, धन - वैभव आदिसे सुखी रहोगे और अन्तमेंख तुम्हें मेरे परमधामकी प्राप्ति होगी ।'
यों कहकर भगवान् विष्णु अन्तर्धान हो गये । भद्रमतिने अपना शेष जीवन भगवानके भजन - कीर्तनमें ही व्यतीत किया और अन्तमें उन्हें प्रभुके वैकुण्ठधामकी प्राप्ति हुई ।