गायत्रीपुरश्चरण -
किसी निश्चित शुभ मुहूर्तमें प्रारम्भ करे । इसके एक दिन पूर्व उपवासपूर्वक क्षौराचरणकर दशविधस्त्रान करे । दूसरे दिन देवमन्दिर या बिल्ववृक्षके नीचे भगवान् सूर्यके स्वरुपका चिन्तन करता हुआ रुद्राक्षकी मालासे प्रतिदिन पाँच सहस्त्र या एक सहस्त्र गायत्रीका जप करे । साथ ही गोघृतसे दशांश हवन भी करता जाय । जपके बाद प्रतिदिन जौकी रोटी और मूँगकी दाल बनाकर भोजन करे । अन्न स्वकीय ही होना चाहिये । चौबीस लाख जप पूरा हो जानेपर पुरश्चरण सम्पूर्ण होता है । यह पुरश्चरण यदि निर्विघ्र समाप्त हो जाय; तो व्रतकर्ताको धन, धान्य, प्रतिष्ठा, पुत्रादिकी प्राप्ति होती है ।