पवित्रार्पणविधि
( बहुसम्मत ) -
श्रावण शुक्ल एकादशीको भगवानको पवित्रक अर्पण किया जाता है । यद्यपि साधारण रुपमें बाजारसे लाये हुए रेशम या सूत्रके पवित्रक उपयोगमें आते हैं, किंतु शास्त्रमें इनका पृथक् विधान है । उसके अनुसार मणि, रत्न, सोना, चाँदी, ताँबा, रेशम, सूत, त्रिसर, पद्मसूत्र, कुशा, काश, मूँज, सन, बल्कल, कपास और अन्य प्रकारसे रेशे आदिसे पवित्रक बनवावे अथवा सौभाग्यवती स्त्रीसे सूत्र कतवाकर उसके तीन तारोंको त्रिगुणित करके उनसे बनावे । रेशमका पवित्रक हो तो उसमें अंगूठेके पर्वके समान यथासामर्थ्य ३६०, २७०, १८०, १०८, ५४ या २७ गाँठ लगावे । उसकी लम्बाई जानु, जंघा या नाभिपर्यन्त करे और उसको पञ्चगव्यसे प्रोक्षण करके शुद्ध जलसे अभिषिक्त करे । फिर
' ॐ नमो नारायणाय '
का १०८ बार जप करके शङ्खोदक्का छींटा दे और रात्रिभर रखकर व्रतके दूसरे दिन धारण करावे । उस समय घृतप्लावित एकाधिक बत्ती या कपूर जलाकर आरती करे और
' मणिविद्रुममालाभिर्मन्दारकुसुमादिभिः । इयं सांवत्सरी पूजा तवास्तु गरुडध्वज ॥'
' वनमाला यथा देव कौस्तुभः सततं हदि । पवित्रमस्तु ते तद्वत् पूजां च हदये वह ॥'
यह श्लोक पढ़कर प्रणाम करे । सत्ययुगमें मणि आदि रत्नोंके, त्रेतामेंख सुवर्णके, द्वापरमें रेशमके और कलियुगामें सूत्रके पवित्रक धारण करानेयोग्य होते हैं और यतिलोग मानसानिर्मित पवित्रक अर्पण करते हैं । विशेष वर्णन विष्णुरहस्य, स्मृति - कौस्तुभ, रामार्चनचन्द्रिका, नृसिंहपरिचर्या और शिवार्चनचन्द्रिका आदिसे विदित हो सकता है ।