शुक्लैकादशीव्रत
( भविष्यपुराण ) -
श्रावण शुक्लही एकादशी पवित्रा, पुत्रदा और पापनशिनी होती है । इसके लिये पहले दिन मध्याह्नमें हविष्यान्नका एकभुक्तव्रत करके एकादशीको प्रातः-स्त्रानादिके अनन्तर ' मम समस्तदुरितक्षयपूर्वकं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं श्रावणशुक्लैकादशीव्रतमहं करिष्ये ।'' यह संकल्प करके भक्तिभाव और विधानसहित भगवानका पूजन करे और अनेक प्रकारके फल, पत्र, पुष्प और नैवेद्य अर्पण करके नीराजन करे । उसके बाद रात्रिके समय गायन, वादन, नर्तन, कीर्तन और कथा श्रवण करते हुए जागरण करे । दूसरे दिन पारणा करके यथाशक्ति ब्राह्मण - भोजन करते हुए जागरण करे । इस व्रतसे पापोंका नाश और पुत्रादिकी प्राप्ति होती है । पहले द्वापरयुगके आदिमें माहिष्मतीके राजा महीजितके पुत्र नहीं था । उससे राजा - प्रजा दोनों चिन्तित थे । उन्होंने घोर वनमें तप करते हुए लोमश ऋषिसे प्रार्थना की, तब उन्होंने श्रावण शुक्ल एकादशीका व्रत करनेकी आज्ञा दी । तदनुसार ग्रामवासियोंसहित राजाने व्रत किया और उसके प्रभावसे उनको पुत्र प्राप्त हुआ ।