शिकवणनाम - ॥ समास चौथा - सदेवलक्षणनिरूपणनाम ॥

परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे कहे करटलक्षण । उन्हें विवेक से त्यागें संपूर्ण । अब सुनें सदेवलक्षण । परम सौख्यदायक ॥१॥
उपजत गुण शरीर में । परोपकारी नाना तरह से । प्रीति सब के अंतरंग मे । सर्वकाल ॥२॥
सुंदर अक्षर लिखना जाने । चपल शुद्ध पढ़ना जाने । अर्थातर समझना जाने । सब कुछ ॥३॥
किसी का मनोगत तोड़ेना । भलों की संगति छोड़ेना । अनुमान में देवलक्षण । लाकर छोड़े ॥४॥
उसे चाहते सकल जन । जहां वहां वह नित्य नूतन । मूर्खता से अनुमान उलझन । कुछ भी नहीं ॥५॥
नाना उत्तम गुण सत्पात्र । वही मनुष्य जगन्मित्र । प्रकट कीर्ति स्वतंत्र । पराधीन नहीं ॥६॥
राखे सब के अंतर । उदंड करे पठन । नियमितता का विस्मरण । होगा ही नहीं ॥७॥
नम्रता से पूछना जाने । निश्चित अर्थ कहना जाने । कहे वैसा बर्ताव जाने । उत्तम क्रिया ॥८॥
जो मान्य हुआ बहुतों से । कोई बोल ना सके उससे । धगधगाती पुण्यराशी । महापुरुष ॥९॥
वह परोपकार करते जाता । हर कोई उसे चाहता । फिर उसे क्या न्यूनता । भूमंडल में ॥१०॥
बहुत जन प्रतीक्षा करते । प्रसंग में तत्काल खड़ा रहे । किसी का भी न्यून ना सह पाये । वह पुरुष ॥११॥
चौदह विद्या चौंसठ कला । जाने संगीत गायनकला । आत्मविद्या की आत्मीयता । वहां उदंड ॥१२॥
सभी से नम्र बोले । मनोगत सम्हाल कर चले । अखंड किसी को पड़ने ही ना दें। कमी किसी की ॥१३॥
न्यायनीति भजनमर्यादा । काल सार्थक करे सदा । दरिद्रता की आपदा । वहां कैसी ॥१४॥
उत्तम गुणों से शृंगारित हुआ । वह बहुतों में सुशोभित हुआ। प्रकट प्रताप से उदित हुआ । मार्तंड जैसा ॥१५॥
ज्ञाता पुरुष होगा जहां । कलह कैसा उठेगा वहां । उत्तम गुणों की रिक्तता जहां । वे प्राणी अभागे ॥१६॥
प्रपंच में जाने राजकारण । परमार्थ में साकल्पविवरण । सभी में जो उत्तम गुण । उनका भोक्ता ॥१७॥
आगे एक पीछे एक । ऐसा कदापि नहीं दंडक । सर्वत्रों के लिये अलौकिक । वह पुरुष ॥१८॥
अंतरंग को लगे ठेस । ऐसा ना करें बर्ताव । जहां वहां विवेक । प्रकट करें ॥१९॥
कर्मविधि उपासनाविधि । ज्ञानविधि वैराग्यविधि। विशाल ज्ञातृत्व की बुद्धि । चलित होगी कैसे ॥२०॥
देखो तो सारे उत्तम गुण । उसे बुरा कहेगा कौन । जैसी आत्मा संपूर्ण । सर्व घटों में ॥२१॥
कार्य में तत्पर अपने । लोग रहते छोटे बड़े । वैसा ही परोपकार करे । मनःपूर्वक ॥२२॥
दुसरो के दुःखों से हो दुःखी । दुसरों के सुखों से होता सुखी । सारे ही रहे सुखी । ऐसी वासना ॥२३॥
उदंड बच्चे नाना प्रकार । पिता का मन सबके ऊपर। वैसे सभी के चिंता का भार । ले महापुरुष ॥२४॥
जिसे कोई भी नहीं कामना । उसकी निःकांचन वासना । धिक्कारने पर भी धिक्कारे ना । वही महापुरुष ॥२५॥
मिथ्या शरीर की हुई निंदा । फिर भी इसका क्या गया । ज्ञाता को और जीत लिया । देहबुद्धि ने ॥२६॥
यह सारा ही अवलक्षण । ज्ञाता देह में विलक्षण । कुछ तो उत्तम गुण । जनों में दिखलायें ॥२७॥
उत्तम गुणों को मनुष्य वेधे । दुर्गुणों के लिये प्राणी खेदे । तीक्ष्ण बुद्धि लोग सादे । क्या जानेंगे ॥२८॥
लोगों को अत्यंत क्षमा करते । लोगों को यह प्रचिति आये । फिर वे लोग सहायता करते । नाना प्रकार से ॥२९॥
बहुतों को लगे मैं महान । सर्वमान्य चाहिये यह विचार । धीर उदार गंभीर । महापुरुष । ॥३०॥
जितने कुछ उत्तम गुण । वे समर्थ के लक्षण । अवगुण तो अभागे लक्षण । सहज ही हुये ॥३१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सदेवलक्षणनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥

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Last Updated : December 09, 2023

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