शिकवणनाम - ॥ समास दूसरा - विवरणनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे कहे लेखनभेद । अब सुनिये अर्थभेद । नाना प्रकार के संवाद । समझ लीजिये ॥१॥
शब्दभेद अर्थभेद । मुद्राभेद प्रबंधभेद । नाना शब्दों के शब्दभेद । जानकर समझें ॥२॥
नाना आशंका प्रत्युत्तर । नाना प्रचित साक्षात्कार। जिसके कारण चमत्कार । होते जगदंतर में ॥३॥
नाना पूर्वपक्ष सिद्धांत । प्रत्यय से देखें नेमस्त । अनुमान से अस्ताव्यस्त । बोलें ही नहीं ॥४॥
प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति । प्रचीति बिना सारी भ्रांति । कूडे के भीतर जगज्जोति । चेतेगी कहां ॥५॥
हेतु समझकर उत्तर देना । दूसरे का हृदगत समझना । मुख्य चातुर्य लक्षण । वे हैं ऐसे ॥६॥
चातुर्य बिना खटपट । वह विद्या ही निरर्थक । सभा में व्यर्थ श्रम । समाधान कैसा ॥७॥
बहुत बोलना सुनें । वहां मौन्य ही धरें । अल्पचिन्ह से समझें । जगदंतर ॥८॥
अशिष्टों में न बैठें । उद्दंडों से न झगड़ें । अपने लिये खंडित न करें । समाधान जनों का ॥९॥
अज्ञातापन न छोडें । ज्ञातापन से न फूलें । हृदय नाना जनों के । छूयें मृदु शब्दों से ॥१०॥
प्रसंग को जानें अच्छे से । बाजु बहुतों की न लें । सत्य होने पर भी फूट गिरे । समूह में ॥११॥
शोध लेने में अलसायें नहीं । भ्रष्ट लोगों में बैठें नहीं । बैठें तो भी करें नहीं । मिथ्या दोष ॥१२॥
अंतरंग आर्त का खोजें । प्रसंग में थोडा ही पढें । प्रभावित करके छोडें । भले मनुष्यों कों ॥१३॥
मजलिसों में न बैठें । समाराधना में न जायें । जाने पर ऊब जाये । जीना अपना ॥१४॥
उत्तम गुणों को प्रकट करायें । फिर किसी से भी बोल सके । देख खोजकर करें । भले मित्र ॥१५॥
उपासना अनुसार बोलें । सर्व जनों को संतुष्ट करें । सारा भलापन रखें । किसी एक से ॥१६॥
ठाई ठाई खोज करें । फिर ग्राम में प्रवेश करें । प्राणिमात्र से बात करें । आत्मियता से ॥१७॥
ऊंच नीच नहीं कहें । सबके हृदय शांत करें । अस्तमान न जायें । कहीं भी ॥१८॥
जग में जगन्मित्र । जिव्हा के पास है सूत्र । कहीं तो भी सत्पात्र । खोजकर निकालें ॥१९॥
होती कथा वहां जायें । दीन समान दूर बैठें । वहां सारा ग्रहण करें । अंतर्याम में ॥२०॥
वहां भले मिलेंगे । व्यापक वे भी समझ में आयेंगे । धीमें धीमें ढेर लगायें । मंदगती से ॥२१॥
सकलों में विशेष श्रवण । श्रवण से श्रेष्ठ मनन । मनन से होता समाधान । बहुत जनों का ॥२२॥
धूर्तता से सकल जानें । अंतरंग में अंतर जानें । समझे बिना थकें । किस कारण ॥२३॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे विवरणनिरूपणनाम समास दूसरा ॥२॥
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Last Updated : December 09, 2023
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