अथ बाणानां कालभेदेन परिहार : । रोगं चौरं त्यजेद्रात्रौ दिवा राजाग्निपंचकम् । उभयो : सन्घ्ययोर्मृमन्यकाले न निंदित : ॥१०९॥
अथ कर्मविशेषे वर्ज्यम् । नृपाख्यं नृपसेवायां गृहगोपेऽग्निपंचकम् । याने चौरं व्रते रोगं त्यजेन्मृत्युं करग्रहे ॥११०॥
अथैकार्गलदोष : । योगांके विषमें चैको १ ज्ञेयोऽष्टाविंशति : २८ समे । अर्द्धं कृत्वाऽश्विनीपूर्वमंकभं मूर्ध्नि दीयते ॥१११॥
विष्कम्भे चाश्विनी देया प्रीतौ स्वातिर्निगद्यते । सौभाग्ये च विशाला स्यादायुष्मान् भरणीयुत : ॥११२॥
शोभने कृत्तिका देया त्वनुराधाऽतिगण्डके । रोहिणी च सुकर्माख्ये धृतौ ज्येष्ठा प्रकीर्त्तिवा ॥११३॥
गंडे मूलं मृग : शूले वृद्धौ चार्द्रा निगद्यते । पूर्वाषाढा ध्रुवे प्रोक्ता व्याघाते च पुनर्वसु : ॥११४॥
हर्षणे चोत्तराषाढा वज्रे पुष्य : प्रकीर्त्तित : । अभिजिच्च तथा सिद्ध आश्लेषा व्यतिपातकी ॥११५॥
धरीयसि धुतिर्देया परिघे च मघा तथा । शिवे धनिष्ठा दातच्या सिद्धौ पूर्वा च फाल्गुनी ॥११६॥
साध्ये शतभिषा देया शुभे चोत्तरफाल्गुनी । पूर्वाभाद्रपदा शुक्ले हस्ते ब्रह्मा प्रकीर्त्तित : ॥११७॥
( बाणोंका कालभेदसे परिहार ) रोगबाण चौरबाण रात्रिमें निषिद्ध हैं और राजबाण अग्निबाण दिनमें त्याज्य हैं , दोनों संध्याकालेंमें मृत्युबाण निधिद्ध है , अन्यकालमें निषिद्ध नहीं है ॥१०९॥
( कर्मविशेषमें वर्ज्य ) राजबाण तो राजाके नौकर रहनेमें अशुभ है और अग्निबाण घरके छानेंमें , चौरबाण यात्रामें , रोगबाण यज्ञोपवीतमें और मृत्युबाण विवाहमें निषिद्ध है और अन्यकयोंमें निषिद्ध नहीं है ॥११०॥
( एकार्गलदोष ) विवाहके दिन जो योग हो उसक्की यदि विषम संख्या हो तो १ फिर मिलावे और सम संख्या हो तो २८ मिलावे फिर आधा करे और अश्विनीसे गिनके जितनी संख्याके अंकका नक्षत्र हो सो ही नक्षत्र रेखाके मस्तक ऊपर लिखे फिर बाकीके नक्षत्र और योगक्रमसे लिखने चाहिये ॥१११॥
नक्षत्र योगोंका लिखना ऊपर स्पष्ट ही है ॥११२॥११७॥
अथैकार्गललक्षणम् । उत्तराभाद्रपच्चैंद्रे चित्रा देया च वैधृतौ । सूर्याचंद्रमसोयोंगे भबेदेकार्गलं तथा ॥११८॥
अथैकार्गलचक्रम् । त्रयोदश १३ तिरो रेखा एकोर्ध्वा मूर्ध्नि विस्तृता । योगांके प्राप्तनक्षत्रे ज्ञेयमेकार्गलं बुधौ : ॥११९॥
अथैकार्गलफलम् । यात्रायां मरण विद्यादारंभे कार्यनाशनम् । वैधव्यं स्याद्विवाहे च दाहश्व वसतां गृहे ॥१२०॥
अथोपग्रहदोष : । अष्टमं ८ पंचमं ५ चाष्टादश १८ वाऽथ चतुर्दशम् १४ द्वाविंशै २२ कोनविंशे १९ च त्रयोविंशं २३ तथैव च ॥१२१॥
चतुर्विशं २४ तथैतानि नक्षत्राण्यष्ट सूर्यभात् । उक्तान्युपग्रहाख्यानि त्याज्यान्युद्वाहनादिषु ॥१२२॥
अथोपग्रहफलम् । गृहप्रवेशे दारिद्रय विवाहे मरणं भवेत । प्रस्थानै विपद : प्रोक्ता उपग्रहदिन यदि ॥१२३॥
बाल्हीके कुरुदेशे च वर्जयेद्भमुपग्रहम् । यत्संख्यचरणे खेटस्तत्पंख्यं चरणं त्यजेत ॥१२४॥
( एकार्गललक्षण ) यदि विवाहके नक्षत्रके सम्मुख रेखापर सूर्य आ जावे तो दोष होता है ॥११८॥
और तेरह १३ लकीर आडी निकाले और के लकीर ऊमी निकाले , तब एकार्गलचक्र होता है , सो इस चक्रकी एक लकीरपर योगके अंकमें विवाहके , नक्षत्रके स्म्मुख सूर्य आ जावे तो एकार्गल होता है ॥११९॥
( एकार्गलफल ) इस एकार्गल दोषमें यात्रा करे तो मृत्यु हो , गृहारंभ करे तो कार्यका नाश हो और विवाह करे तो विधवा हो गृहप्रवेश करे तो अग्निते घर दग्ध हो जावे ॥१२०॥
( उपग्रह दोष ) सूयेके नक्षत्रसे ८ । ५ । १८ । १४ । २२ । १९ । २३ । २४ यह आठ नक्षत्र उपग्रहसंज्ञक हैं सो विवाह आदि कार्योंमें त्याज्य हैं ॥१२१॥१२२॥
( उपग्रह फल ) इन नक्षत्रोंमें गृहप्रवेश करे तो दारिद्रय हो , विवाह करे तो मृत्यु हो , यात्रा करे तो विपदा हो . ॥१२३॥
परंच यह उपग्रह दोष बाह्नीकदेशप्रें और कुरुक्षेत्रमें त्याज्य हैं अथवा नक्षत्रके जिस चरणपर ग्रह हो उसी संख्याके चरणके देवे ॥१२४॥
अथक्रांइसाम्यदोष : ऊर्घ्वस्तिस्त्रस्तिरस्तिस्त्रो मध्ये मीन १२ लिखेद् बुध : । सूर्याचद्रमसौ द्दष्टौ क्रांतिसाम्यं निगद्यते ॥१२५॥
मीन : १२ कन्यकया ६ युक्तो मेष : १ सिंहेन ५ संगत : । मकरेण १० वृष : क्रांतश्वापो ९ ऽपि मिथुनेन ३ च ॥१२६॥
कर्केण ४ वृश्चिको ८ विद्धो वेधश्व तुल ७ कुभयो : ११ । क्रांतिसाम्यकृतोद्वाहो नजीवतिकदाचन ॥१२७॥
अथ फलम् । क्रांतिसाम्यं यदा कुंभे ११ तदा तद्दहते तनुम् । पितुर्विनाशं मीने च मेषे च पतिनाशनम् ॥१२८॥
वृषे २ कुक्षिभवां पीडां मिथुने ३ कामचारिणीम् । वंध्यां स्त्रीं च तथा कर्के ४ करोति कुरुते गृहम् ॥१२९॥
इति क्रांतिसाम्यम् । अथैकार्गलादिदोषपरिहार : । एकार्गलोपग्रहपातलत्ताजामित्रकर्त्तर्युदयास्तदोषा : । नश्यंति चंद्रर्त्तबलोपपन्ने लग्ने यथाऽर्काश्र्युदये तमिस्त्रा ॥१३०॥
( क्रांतिसाम्य ) तीन ३ लकीर ऊभी निकाले , और तीन ३ आडी निकाले , फिर बीचकी रेखाके ऊपर मीन १२ लिखे और क्रमसे मेषादिराशि वाममार्गसे लिख देवे । यदि एक रेखापर सूर्य चंद्रमा आवें तो क्रांतिसाम्य दोष लगता है ॥१२५॥
सो यह क्रांतिसाम्य मीन १२ कन्या ६ का , मेष १ सिंह ५ का , मकर १० वृष २ का , मिथुन ३ धन ९ का , कर्क ४ वृश्विक ८ का , तुला ७ कुंभ ११ का , जानना सो इनमें विवाह करनेसे मृत्यु होती है ॥१२६॥१२७॥
( क्रांतिसाम्यफल ) यदि कुंभका क्रांतिसाम्य हो तो शरीरकी दग्ध करे , मीनका पिताका नाश करे , मेषका पतिको मारे , वृमका कुक्षिपीडा करे , मिथुनका स्त्रीको बदचलन करे , कर्कका वंध्य करे ॥१२८॥१२९॥
( एकार्गलादि दोषोंका परिहार ) एकार्गलदोष , उपग्रह , पातदोष , लत्तादोष , यामित्रदोष , कर्तरीदोष , लग्नका तथा सप्तम स्थानक दोष यदि चंद्रमा स्रूर्य बलवान् हो , तो संपूर्ण दोष दूर हो जावें , जिस तरह सूर्यका उदय होनेसे रात्रि ( अंधकार ) दूर हो जावे ॥१३०॥
अथ देशभेदेन दोषपरिहार : । उपग्रहर्क्षं कुरुबाह्निकेषु कलिंगबंगेषु च पातितं भम् । सौराष्ट्रशाल्वेषु च लत्तितं भं त्यजेनु विद्धं किल सर्वदेशे ॥१३१॥
मतांतरम् । लत्ता मालवके देशे पातश्व कुरुजांगले । एकार्गलं च काश्मीरे वेधं सर्वत्र वर्जयेत् ॥१३२॥
युतिदोषो भवेद्नौडे यामित्रस्य च यामुने । वेधदोषस्तु विंध्याख्ये देशे नान्येषु केषु च ॥१३३॥
तिथयो मासदग्धाख्या दग्धलग्नानि तान्यपि । मध्यदेशे विवर्ज्यानि न दूष्याणी तरेषु च ॥१३४॥
अथ मध्यसंज्ञकदेशा : । मद्रारिमेदमांडव्यसाल्वनीपाज्जिहानसंख्याता : । मरुवत्सघोषयामुनसारस्वतमत्स्यमाध्यमिका : ॥१३५॥
माथुरकोपज्योतिषधर्मारण्यानि शूरसेनाश्व । गौरग्रीवो देहिकपांडुगुडाश्वत्थपांचाला : ॥१३३॥
साकेतकंककुरुकालकोटिकुकुराश्व पारियात्रनग : । औदूंबरकाप्रिष्ठलगजाह्वयाश्वेति मध्यमिदम् ॥१३७॥
( देशभेदसे दोषपरिहार ) उपग्रहदोष कुरुक्षेत्र बाह्निकदेशमें अशुभ है , और पातदोष , कलिंग वंग देशोंमें , लत्ता दोष सौराष्ट्र शाल्व देशोंमें वर्जनीय है तथा वेधदोष संपूर्ण देशोंमें त्याज्य है ॥१३१॥
( दूसरा मत ) लत्तादोष मालवमें अशुभ है और पातदोष कुरुक्षेत्र , जांगलदेशोंमें त्याज्य है , एकार्गल दोष काश्मीरमें और वेधदोष संपूर्ण देशोंमें वर्जना चाहिये ॥१३२॥
युतिदोष गौडदेशमें , यामित्र यमुनाके नजदिकके देशोमें , वेधदोष विंध्याचलके समीप निषिद्ध है अन्य देशोंमें निषिद्ध नहीं है ॥१३३॥
और दग्धा तिथि , दग्ध लग्न , मध्यदेशमें अर्थात् आर्यावर्त्तक्षेत्रभरमें निषिद्ध हैं अन्यजगहमें नहीं हैं ॥१३४॥
( मध्यदेशका लक्षण ) मद्र , अरि , मेद , मांडव्य , साल्व , नीप , उज्जिहान , मरुदेश ( माखाड ), वत्सधोष , यामुन , सारस्वत , मत्स्प , मथुरा , उपज्योतिष , धर्मारण्य , शूरसेन , गौरग्रीव , देहिक , पांडु , गुड , अश्वत्थ , पांचाल , साकेत , कंक , कुरुक्षेत्र , कालकोटि , कुकुर ’ पारियात्रनग , औदुंबर , कापिष्ठल , हस्तिनापुर इतने देशोंकी मध्यदेश संज्ञा है अर्थात् हिमाचल , विंध्याचलके बीचमें द्वारिकासे लेके प्रयागतक मध्य देश है ॥१२५॥१३७॥