विवाहप्रकरणम्‌ - श्लोक ७३ ते ९१

अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .


अथ दग्धास्तिथय : ॥ मीने १२ चापे ९ द्वितीया च २ चतुर्थी ४ वृष २ कुंभयो : ११ । मेष १ कर्कटयो : ४ षष्ठी ६ कन्यायां ६ मिथुने ३ ऽष्टमी ८ ॥७३॥

दशमी १० वृश्विके ८ सिंहे ५ द्वादशी १२ मकरे १० तुले ७ । एताश्व तिथयो दग्धा : शुभे कर्मणि वर्जिता : ॥७४॥

अथ दग्धतिथिफलम्‌ ॥ विवाहे विधवा नारी यात्रायां मरण ध्रुवम्‌ । निष्फलं कृषिवाणिज्यं विद्यारंभे च मूर्खता ॥७५॥

गृहप्रवेशे भंग : स्याच्चूडायां मरणं भवेत्‌ । ऋणदाने फलं नास्ति व्रतदाने च निष्फले ॥७६॥

अथ होलाष्टकम्‌ ॥ शुक्लाष्टमीं ८ समारश्र्य फाल्गुनस्य दिनाष्टकम्‌ । पूर्णिमाऽवधिकं त्याज्यं होलाष्टकमिदं शुभे ॥७७॥

अथ परिहार : । शुतुद्यां च विपाशायामैरावत्यां त्रिपुष्करे । होलाष्टकं विवाहादौ त्याज्यमन्त्रत्र शोभनम्‌ ॥७८॥

अथ विवाहे दश दोषा : ॥ लत्ता १ पातो २ युति ३ वेंधो ४ जामित्रं ५ बुधपचकम्‌ ६ । एकार्गलो ७ पग्रहौ च ८ क्रांतिसाम्यं ९ तथापरम्‌ ॥७९॥

दग्धातिथि १० श्वविज्ञेया दश दोषा महाबला : । एतान्‌ दोषान्‌ परित्यज्य लग्नं संशोधयेद्‌ बुध : ॥८०॥

( दग्धा तिथि ) मीन धनके सूर्यमें द्वितीया २ दग्धा तिथि है , वृष कुंभके सूर्यमें चतुर्थी ४ , मेष कर्कमें षष्ठी ६ , कन्या मिथुनमें अष्टमी ८ , वृश्विक सिंहमें दशमी १० और मकर तुलाके सूर्यमें द्वादशी १२ तिथि दग्धा है , सो यह दग्धा तिथि शुभकार्यमें त्याज्य है ॥७३॥७४॥

( दग्धातिथि फल ) दग्धा तिथिमें विवाह करे तो कन्या विधवा हो , यात्रा करे तो मृत्यु हो , खेतो वाणिज्य करे तो निष्फल हो जावे , विद्यारंभ करे तो मूर्ख रहे ॥७५॥

गृहप्रवेश करे तो नाश होवे . चूडाकर्म ( चौल ) करे तो मृत्यु हो , धन देवे तो निष्फल होजावे और व्रत दान करे तो फल नहीं होवे ॥७६॥

( होलाष्टक ) फाल्गुण सुदी अष्टमीसे पूर्णिमातक आठ दिन ८ होलाष्टकके हैं सो विवाह आदि शुभ कार्योंमें त्यागने चाहिये ॥७७॥

( परिहार ) शतद्र नदीके या विपाशाके उज्जयिनी पुष्करराजके समीप देशोंमें त्याज्य हैं और अन्य देशोंमें शुभ हैं ॥७८॥

( दश दोष ) लत्ता १ , पात २ , युति ३ , वधे ४ , जामिंत्र ५ , बुधपंचक ( वाण ) ६ , एकार्गल ७ , उपग्रह ८ , क्रांतिसाम्य ९ , दग्धा तिथि १० यह दश दोष महाबलवान्‌ हैं सो इनको त्यागके विवाह करना श्रेष्ठ है ॥७९॥८०॥

तत्रादो वेधज्ञानार्थं पञ्चशलाकाचक्रम्‌ ॥ पचोर्ध्वा : स्यापयेद्रेखा : पंच तिर्यङ्गमुखास्तथा । द्वयोश्व कोणयोर्द्वे द्वे चक्रं पंचशलाककम्‌ ॥८१॥

ईशाने कृत्तिका देया क्रमादन्यानि भानि च । ग्रहास्तेषु प्रदातव्या ये च यत्र प्रतिष्ठिता : ॥८२॥

लग्नस्य निकठे या च गता भवति पूर्णिमा ॥ तन्नक्षत्रे स्थितश्वन्द्रा दातव्यो गणकोत्तम : ॥८३॥

पौर्णमास्यां यद्दक्षं च फलं तस्यैकमाप्तकम्‌ । यावन्नान्या भवेत्पूर्णा तमेवाब्जं विचारयेत्‌ ॥८४॥

( पंचशलाकाचक्र ) पांच रेखा ऊपरको काढे ( खैंचे ) और पांच रेखा टेढी निकाले , फिर दो दो रेखा कोणोंमें लिखे तो पंचशलाका चक्र होता है ॥८१॥

इस चक्रके ईशान कोणमें कृत्तिका लिखे , फिर क्रमसे प्रदक्षिण मार्गसे बाकीके २७ नक्षत्र लिख देवे और जिस जिस नक्षत्र पर जो जो ग्रह होवे सो भी लिख देना चाहिये ॥८२॥

और लग्नके नजदीक गई हुई पूर्णिमाको सूर्योदयमें जो नक्षत्र हो उसी नक्षत्रके ऊपर चंद्रमा लिखना योग्य है ॥८३॥

और पूर्णिमाको जो नक्षत्र है उसका फल एक १ मासतक जानना , जबतक दूसरी पूर्णिमा नहीं आवे तबतक पूर्णिमाका ही चंद्रमा विवाहमें योग्य जानना ॥८४॥

अथ लत्तादोष : । नक्षत्रं द्वादशं भानुस्त्रितयं ३ उत्तया कुज : । पृष्ठं ६ जीवोऽष्टमं ८ मन्दो हं त दक्षिणत : सदा ॥८५॥

वामेन सप्तमं ७ चांद्रिर्नवमं ९ सिंहिकासुत : । हंति भं पंचमं ५ शुक्रो द्वाविंशं २२ पूर्णचन्द्रमा : ॥८६॥

अथ लत्ताफलम्‌ । रवेर्लत्ता हरेद्वित्तं कुजस्य कुरुते मृतिम्‌ । बृहस्पतेर्बंधुनाशं शने : कुर्यात्कुलक्षयम्‌ ॥८७॥

बुधस्य कुरुते त्रासं लत्ता राहोर्विनाशनम्‌ । शुक्रस्य दुःखदा नित्यं त्रासदा च कृलानिधे : ॥८८॥

अथ पातदोष : । सूर्ययुक्ताच्च नक्षत्रादेषु पातोऽभिजायते । मघा १ ऽऽश्लेषा २ च चित्रा ३ च सानुराधा ४ च रेवती ५ ॥८९॥

श्रवणोऽपि च षष्ठोऽयं ६ पातदुष्टो निगद्यते । अश्विनीमवधिं कृत्वा गणयेल्लग्नभावधिम्‌ ॥९०॥

पावक : पवमानश्व विकार : कलहोऽपर : । मृत्यु : क्षयश्व विज्ञेया : पातषट्‌कस्य लक्षणम्‌ ॥९१॥

( लत्तादोषविचार ) सूर्य अपने नक्षत्रसे बारहवें नक्षत्रके लात मारता है , मंगल तीसरे ३ के , गुरु छठे ६ के , शनैश्वर आठवें ८ के , प्रदक्षिणाके मार्गसे लात मारता है ॥८५॥

और बुध सात ७ वें नक्षत्रके , राहु नैंवें ९ नक्षत्रके , शुक्र पांचवें ५ के और पूर्ण चन्द्रमा बाइसवें २२ नक्षत्रके वाम मार्गसे लात मारता है ॥८६॥

( लत्ताफल ) सूर्यकी लात धन हरे , मंगलकी लात मृत्यु करे , बृहस्पतिकी लात बांधवोंका नाश करे , शनिकी लात कुलका क्षय करे ॥८७॥

बुधकी लात त्रास देवे , राहुकी लात विनाश करे , शुक्रकी लात दुःख करे और चन्द्रमाकी लात त्रास देवे , राहुकी लात विनाश करे , शुक्रकी लात दुःख करे और चन्द्रमाकी लात त्रास देवे , ॥८८॥

( पातदोष ) सूर्यके नक्षत्रसे विवाहके नक्षत्रतक गिनके लकीर काढे और मघा आदि पातके नक्षत्रोंपर चिह्न करता जावे फिर अश्विनीसे विवाहके नक्षत्रतक गिने यदि विवाहके नक्षत्रकी संख्यापर मघा आश्लेषा चित्रा अनुराधा रेवती श्रवण इन नक्षत्रोंमेंसे कोई नक्षत्र आ जावे तो पातदोष लगता है ॥८९॥९०॥

यह पातदोष पूर्वोक्त नक्षत्रोंका पावक , पवमान , विकार , कलह , मृत्यु , क्षय इन छ : नामोंसे है सो नाम जैसा ही फल जानना चाहिये ॥९१॥

N/A

References : N/A
Last Updated : November 11, 2016

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP