ऐसे लोगों के विषय में पटल में आगे उन उन स्थानों पर हम विधि पूर्वक कहेगें । अब , हे नाथ ! हे बल्लभ ! विधिपूर्वक पशुभाव को सुनिए । उत्तम पण्डित जो पशुभाव में स्थित है , वह प्रातः काल में उठकर मङ्गकारी गुरु के चरण पङ्कज का अपने शीर्ष पङ्कज में ध्यान कर , तदनन्तर एक मात्र महालक्ष्मी के वीर स्वरूप श्री पाद का उपहार द्वारा पूजन कर स्तुतिपूर्वक उनको प्रणाम करे ॥१२ - १४॥
देवी की ध्यान --- जिन महाश्री के तेज से सारा त्रैलोक्य व्याप्त है , जो मण्डल में रहने वाली तथा महोत्सव स्वरूपा हैं , करोड़ों बिजली की जगमगाहट के समान जिनके शरीर की कान्ति है जो करोड़ों चन्द्रमा के समान सुशीतल हैं । जो स्वयंभू लिङ्र को साढे तीन बार गोलाकार रूप में परिवेष्टित कर अवस्थित है , महारक्त वर्ण वाली , मनोन्मयी उन महादेवी को प्रातः काल में प्रबुद्ध करना चाहिए ॥१५ - १६॥
द्वादश अंगुल स्वरूप वाली , श्वास तथा उच्छवास इन दो प्रकार की वृति वाली , योगिनी , खेचरी , वायुस्वरूपा , मूलाधार रूप कमल में निवास करने वाली देवी व , श , ष , स , इन चार वर्ण स्वरूपों वाली , करोड़ों सहस्त्र संख्या वाले सूर्य के समान प्रकाश वाली , कुलमोहिनी , महासूक्ष्मपथ के प्रान्त में भीतर ही भीतर चलने वाली , त्रैलोक्य की रक्षा करने वाली , वाक्य देवता , शम्भु स्वरूपा , महान् महान् बुद्धि देने वाली , सहस्त्रदल कमल के ऊपर निवास करने वाली , महासूक्ष्म पथ में तेजः स्वरूपा तथा मृत्यु स्वरूपा , कालस्वरूपा , सर्वरूपा , सब जगह रहने वाली सर्व चेतना स्वरूपा देवी का पुनः पुनः ध्यान कर उन्हें अपने शीर्षस्थान के अमृत समुद्र में ऊपर ले जाकर सन्निविष्ट करे ॥१७ - २१॥
तदनन्तर वहाँ से उन्हें अमृतपान कराकर अपने स्थान मूलाधार में लाकर प्रतिष्ठित करे । मूलाधार में ले आने के समय मध्य में रहने वाली सुषुम्ना के मध्य से अमृत में स्नान करा कर अपने स्थान में उनकी पूजा करे । उन्हें ऊपर की ओर ले जाते समय साधक उनके तेजःस्वरूप का ध्यान करे ॥२२ - २३॥
जब उन्हें नीचे की ओर मूलाधार में लाना हो तब सुधाधारा में डूबी हुई आनन्द विग्रह वाली महाकुण्डलिनी के स्वरुप में बारम्बार ध्यान करे । ऐसा करने से साधक सभी सिद्धियों का ईश्वर बन जाता है । फिर मूलाधार में किरण पुञ्जों से प्रकाशित अमृतानन्द देने के कारण मुक्तिस्वरूपा समस्त कल्याणकारिणी उन देवी का निम्न मन्त्र से पूजन करे -
मानसोच्चार बीज ( ॐ ), माया ( हीं ) अथवा कामबीज ( क्लीं ), तदनन्तर ५० वर्णों ( अकार से लेकर क्षकार तक ) की माला अनुलोम क्रम से जप कर , पुनः प्रतिलोम क्रम से जप कर , तद्नन्तर ’ जयद ’ नामक स्तोत्र को पढ़े । ऐसा करने से साधक को सिद्धि प्राप्त होती है अब हे भैरव ! उस स्तोत्र को सुनिए ॥२४ - २८॥