अध्याय दूसरा - श्लोक १८१ से १९७

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


जो सब दिशाओंमें विजयनामका हो और जिसमें दो शाला हों वह शंकनामका होता है वह मनुष्योंको शुभदायी होता है ॥१८१॥

जो सब दिशाओंमें विपुल हो और जिसमें दो शाला हों उस घरको संपुटनामक कहते है. वह धनधान्यको देता है ॥१८२॥

जो सब दिशाओंमें धनद हो वा सुवक्र वा मनोरम हो वह घर कान्तनामका होता है वह सब घरोंमें शोभन कहा है ॥१८३॥

दो शालाओंके घरोंके ये १३ भेद इन गृहोंके फ़लपाकके लिये मैने विस्तारसे कहे ॥१८४॥

पूर्वदक्षिण १, दक्षिणपश्चिम २, पश्चिउत्तर ३, उत्तरपूर्व ४, प्राकपश्चिम ५, दक्षिण उत्तर ६, इन भेदोंसे दो शालाका वास्तु छ: प्रकारका होता है ॥१८५॥

इसके अनंतर तीन शालाओंके वात्सुको कहते हैं- उत्तरके द्बारसे जो रहित हो ऎसा तीन शालाक गृह हिरण्यनामक होता है वह धन धान्यको देता है और राजाओंके सुखको बढाता है ॥१८६॥

जिसमें पूर्वके द्बारकी शाला न हो वह गृह सुक्षेत्रनामक होता है और पुत्र पुत्रोंकी वृध्दि और धन धान्यकी समृध्दिको देता है ॥१८७॥

जो दक्षिणकी शालासे रहित हो और जिसेअमें तीन शाला हों ऎसे घरको चुल्ही कहते है, उसमें धन और पुत्र पौत्र आदिका नाश होता है ॥१८८॥

जो घर पश्चिमकी शालासे रहित हो उअस घरको पक्षघ्न कहते हैं वहं पुत्रोंके दोषका दाता और पुरवासियोंकी शत्रुताको देता है ॥१८९॥

तीन शालाके गृहोंके ये चार भेद मैंने कहे, इससे घरके कर्ममें बुध्दिमान मनुष्य इनका विचारकर घरको बनवावे ॥१९०॥

इसके अनन्तर चार शालाओंके घरोंके कहते है- जिस घरमें चारों तरफ़ अलिन्दोंका स्थापन न हो और जिसमें चार द्बार हों उस वस्तुको सर्वतोभद्र कहरे है. एक ग्राममें चार शालाजे घरमें दुर्भिक्षमें, राज्यके उपद्रवमें ॥१९१॥

यदि स्वामी अपनी स्त्रीको संग शुक्रास्तमें लेजाय तो सन्मुख शुक्रका दोष नही. राजा और देवताओंक जोम घर है वह सुखदायी होता है ॥१९२॥

जिसकी प्रदक्षिणाके अन्तमें सब तरफ़ शाला भीत अलिन्द हों और पश्चिमका द्वार न हो उस घरको नन्द्यावर्त कहते है ॥१९३॥

वह शुध्द जन्मवाले श्रेष्ठ पुरुषोंके सुख और आरोग्यका दाता और श्रेष्ठ कहा है. जिसकी दक्षिणदिशामें एक द्बारका अलिन्द नेत्रभागमें हो ॥१९४॥

दक्षिणमें द्वार न हो उस घरको वर्धमान कहते है. वह सब वर्णोंको शुभदायी वृध्दि और पुत्र पौत्रोंको देता है ॥१९५॥

जिसका पश्चिम और उत्तरमें अलिन्द हो और पूर्वदिशा पर्यंत दो अलिन्द उठेहुए हों और उनके मध्यमें एक अलिन्द हो और पूर्वको जिसका द्वार हो उस घरको स्वस्तिक और सुखदायी कहते हैं ॥१९६॥

जिस घरमें पूर्व और पश्चिममें दो अलिन्द हों और गृहके अन्तनक दो अलिन्द हों और उत्तरको जिसका द्वार न हो उस घरको रुचसनामका कहते हैं ॥१९७॥

इति पं० मिहिरचन्द्रकृतभाषाविवृतिसहिते वास्तेशास्त्रे समगृहादिनिर्माणे द्वितीयोऽध्याय: ॥२॥

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Last Updated : January 20, 2012

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