अध्याय दूसरा - श्लोक ६१ से ८०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


पादुका ( खडाऊँ ) और उपानह ये दोनों वृषाय वा ध्वजमें करने सुवर्ण और रौप्याआदि धातु और अन्य स्थानमें ध्वज श्रेष्ठ कहाहै ॥६१॥

ब्राम्हणोंमें ध्वज श्रेष्ठ होता है और ब्राम्हण पश्चिमदिशाको गृहका मुख बनवावे क्षत्रियोंको सिंह श्रेष्ठ कहाहै और उत्तरको गृहका मुख श्रेष्ठ कहा है ॥६२॥

वैश्योंको वृष श्रेष्ठ कहाहै और पूर्वाभिमुख गृह शुभ होता है और शूद्रोंको गजाय और दक्षिणाभिमुख गृह श्रेष्ठ कहे है और सब आयोंमें गजका आय श्रेष्ठ कहा है ॥६३॥

क्षत्रिय और वैश्योंको ध्वजा श्रेष्ठ कहा है यह बृहस्पतिने कहा है. धर्मका अभिलाषी ब्राम्हण सिंहायको अवश्य त्याग दे ॥६४॥

सिंहके आयमें घरमें चण्डता और अल्पसन्तान होती है, ध्वजायमें पूर्णसिध्दि और वृषाय पशुओंकी वृध्दि देता है ॥६५॥

गजायमें समस्त सम्पदा बढती है. शेष आय शोक और दु:खके दाता होते है, गृहको पिण्डको अर्थात हाथोंकी संख्याको नौ ९ नौ ९, ६ ,८, ३, ८, ८, ७ इनसे गुणते और क्रमसे नाग ८, ७, ९, १२, ८,१२,१५, २७, १२० इनका भागदेनेपर ये पदार्थ क्रमसे होते है ॥६६॥ ॥६७॥

आय वार अंशक द्रव्य ऋण नक्षत्र तिथि युति और आयु और गृहके स्वामीका नक्षत्रका और गृह नक्षत्र एक होजाय तो गृह मृत्युका दाता होता है ॥६८॥

ये संपूर्ण शुभके दाता और जो असंपूर्ण होय तो अनिष्टको देते हैं और गृहमें ८ आठका भाग देनेपर जो शेष अंक रहै उसमें व्यय होता है ॥६९॥

जिस घरमें धन अधिक हो उसमें वृध्दि और जिसमें ऋण अधिक हो उसमें निर्धनता होती है व्ययसे युक्त क्षेत्रके फ़लमें ध्रुव आदि अक्षरोंको मिलाकर ॥७०॥

और तीनका भाग देकर शेषमें क्रमसे इन्द्र यम भूमिका स्वामी इनके अंशक होते हैं. इंद्रके अंशमें पदवीकी वृध्दि और महान सुख होता है ॥७१॥

यमके अंशमें निश्चयसे मरण और अनेक प्रकारके रोग शोक होते है, राजाके अंशमें धन धान्यकी प्राप्ति और पुत्रोंकी वृध्दि होती है ॥७२॥

और राशिकूट आदि संपूर्णकी चिन्ताभी गृहके आरम्भमें करे, दूसरी और बारहवी राशि गृह और गृहके स्वामीके होय तो निश्चयसे दरिद्रत होती है और त्रिकोण ( ९ । ५ ) में सन्तानका अभाव होता है ॥७३॥

षडष्टक ( ६ । ८) में धनका अभाव और विपरीत ( ८ ।६ ) में धन कहा है और द्युन ७ में पुत्र स्त्रीका लाभ होता है ॥७४॥

और जन्मसे तीसरी राशिमें धन धान्यका आगमन होता है, दशवां और ग्यारहवां चन्द्र्मा धन आयु और बहुत पुत्रोंका देता है ॥७५॥

चौथा आठवां बारहवां चन्द्रमा मृत्यु और पुत्रोंको नाशको देता है और त्रिकोण ( ९। ५ ) में सन्तानका अभाव और कोई आचार्य त्रिकोणको बन्धु गृहमें शुभ ॥७६॥

चन्द्रमाको मुनिजन कहते है यह मेरा मत नही है । अश्विनीसे आदि लेकर तीन नक्षत्र मेषमें और मघाअदि तीन सिंहमे कहे है ॥७७॥

मूलाअदि तीन धनमें कहे है और शेषराशि दो दो नक्षत्रोंमें समझनी, आदित्य और मंगलवार और इनकी राशियोंके अंश सदैव अग्निके भयको देते हैं ॥७८॥

और शेष ग्रहोंके वार अंश कर्ताकी इष्टसिध्दिको देते हैं गृहका आगत नक्षत्र यदि राशिरुपहो ॥७९॥

तो उसके नवांशके वशसे सदैव गृहको जानै विपत्तारा विपत्तिको देती है, प्रत्यरि प्रतिकूल ( उलट ) फ़लको देती है ॥८०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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