शंयु n. एक आचार्य, जो एक विशिष्ट प्रकार के यज्ञपद्धति का ज्ञाता माना जाता था । इसकी मृत्यु के पश्चात् वह यज्ञपद्धति नष्ट होने का धोखा निर्माण हुआ । इसी कारण इसके अनुगामियों ने वह ज्ञान पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न किया था
[श. ब्रा. १.९.१.२४] । यजुर्वेद संहिताओं में इसे अग्नि का ही प्रतिरूप माना गया है
[तै. सं. २.६.१०.१, ५.२.६.४] ;
[तै. ब्रा. ३.३.८.११] ;
[तै. आ. १.५.२] ।
शंयु (बार्हस्पत्य) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा, जो बृहस्पति के पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र था
[ऋ. ६.४४-४६, ४८] । शतपथ ब्राह्मण में निर्दिष्ट शग्यु बार्हस्पस्त्य एवं यह दोनों एक ही होंगे
[श. ब्रा. १.९.१.२५] । पौराणिक साहित्य में इसे एक अग्नि कहा गया है, एवं इसकी माता एवं पत्नी का नाम क्रमशः तारा, एवं धर्मकन्या सत्या दिया गया है । अपनी इस पत्नी से इसे भरत एवं भारद्वाज नामक दो पुत्र, एवं अन्य तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई
[म. व. २०९.२-५] । चातुर्मास्यसंबंधित यज्ञों मे एवं अश्वमेध यज्ञ में इसका पूजन किया जाता है ।