शंकुकर्ण n. ‘अतल’ नामक पाताललोक में रहनेवाला एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था
[ब्रह्मांड. २.२०.१६] ।
शंकुकर्ण II. n. दक्ष के अनुचरों का सामूहिक नाम
[मत्स्य. ४.५२] ।
शंकुकर्ण III. n. एक राक्षस, जो अशोकवन में सीता के संरक्षणार्थ नियुक्त किया गया था
[वा. रा. सुं. १८.२८] ।
शंकुकर्ण IV. n. (सो. कुरु.) एक राजा, जो जनमेजय एवं वपुष्टमा के पुत्रों में से एक था
[म. आ. ९०.९४] । पाठभेद (भा. सं.) - ‘शंकु’।
शंकुकर्ण IX. n. एक पापी ब्राह्मण, जो गीता के सातवें अध्याय के पठन से मुक्त हुआ था
[पद्म. उ. १८१] ।
शंकुकर्ण V. n. धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था
[म. आ. ५२.१४] ।
शंकुकर्ण VI. n. एक स्कंदपार्षद, जो उसे पार्वती के द्वारा दिये गये दो पार्षदों में से एक था । दूसरे पार्षद का नाम पुष्पदंत था
[म. श. ४४.४७] ।
शंकुकर्ण VII. n. स्कंद का एक सैनिक
[म. श. ४४.५२] ।
शंकुकर्ण VIII. n. कुबेरसभा में रहनेवाला एक शिवपार्षद
[म. स. परि. १.३.२०] ।
शंकुकर्ण X. n. ०. एक ब्राह्मणवेषधारी शिवावतार, जिसने एक पिशाच को मुक्ति प्रदान की थी
[पद्म. स्व. ३५] ।