मंकणक n. एक प्राचीन ऋषि, जो मातरिश्वन् तथा सुकन्या का पुत्र था । कश्यप के मानसपुत्र के रुप में इसका वर्णन प्राप्त है
[वामन.३८.२] । बालब्रह्मचारी की अवस्था में सरस्वती नदी के किनारे ‘सप्त सारस्वत तीर्थ’ में जाकर, यह हजारों वर्ष स्वाध्याय करते हुए तपस्या में लीन रहा । एकबार इसके हाथ में कुश गड जाने से घाव हो गया, जिससे शाकरास बहने लगा । उसे देखकर हर्ष के मारे यह नृत्य करने लगा । इसके साथ समस्त संसार नृत में निमग्न हो गया । ऐसा देखकर देवों ने शंकर से प्रार्थना की, कि इसे नृत्य करने से रोके; अन्यथा इसके नृत्य के प्रभाव से सभी विश्व रसातल को चला जायेगा । यह सुनकर ब्राह्मण रुप धारण कर शंकर ने इससे नृत्य करने का कारण पूछा । तब इसने कहा, ‘मेरे हाथ से जो रस बह रहा है, इससे यह प्रकट है कि, मुझे सिद्धि प्राप्त हो गयी है । यही कारण है कि, आज मै आनंद में पागल हो खुशी से नाच रहा हूँ’। यह सुनकर ब्राह्मण वेषधारी शंकर ने अपने अँगूठे में एक चोट मारकर उससे बर्फ की तरह श्वेत झरती हुयी भस्म निकाली, जिसे देखकर यज चकित हो उठा । यह तत्काल समझ गया कि, वह कोई अवतारी महापुरुष है । इसके नमस्कार करते ही शंकर ने अपने दर्शन दिये, तथा प्रसन्न होकर वर मॉंगने के लिए कहा । मंकणक ने शंकरजी के पैरों में गिरकर स्तुति की, तथा वर मॉंगा कि, वह इसे इस अपार प्रसन्नता से मुक्त करें, जिसके प्रसन्नता के उन्माद मेंयह अपनी तपस्या से भी विलग हो गया था । शंकर ने कहा, ‘ऐसा ही होगा, मेरे प्रसाद से तुम्हारा तप सहस्त्र गुना अधिक हो जायेगा’
[म.व.८१.९८-११४] ;
[श.३७.२९-४८] ;
[पद्म. सृ.१८] ;
[स्व.२७] ;
[स्कंद. ७.१-३६, २७०] । एक बार तपस्याकाल में स्नान हेतु सरस्वती नदी में उतरा । वहॉं समीप ही स्नान करनेवाली एक सुन्दरी को देखकर इसका वीर्य स्खलित हुआ । यह देख कर इसने उस वीर्य को कमण्डलु में एकत्र कर उसके सात भाग किये, जिससे निम्नलिखित सात पुत्र उत्पन्न हुएः